दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, संसद पर कानून बनाने की जिम्मेदारी छोड़ी, कहा- उम्मीदवार आपराधिक रिकॉर्ड की दें जानकारी

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दागी नेताओं के चुनाव लड़ने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 सितंबर) को अपना अहम फैसला सुना दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने केवल चार्जशीट के आधार पर दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक से इनकार कर दिया है। हालांकि अदालत ने संसद से कहा है कि ऐसे लोगों को संसद में प्रवेश से रोकने के लिए उसे कानून बनाना चाहिए। कोर्ट ने संसद पर कानून बनाने की जिम्मेदारी छोड़ दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने पारदर्शिता के लिए निर्देश भी दिए हैं।

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव लड़ने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार को अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचन आयोग के समक्ष घोषित करना होगा। साथ ही न्यायालय ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति का अपराधीकरण चिंता का विषय है। न्यायालय ने कहा कि किसी मामले में जानकारी प्राप्त होने के बाद उस पर फैसला लेना लोकतंत्र की नींव है। उसने विधायिका से कहा कि वह राजनीति से अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए कानून बनाने पर विचार करे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, विधायिका में उनके प्रवेश और कानून बनाने में उनकी भागीदारी को रोकने के लिए कानून बनाने की जरूरत है। न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रहा है। संसद को इस महामारी से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि नागरिकों को अपने उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जानने का पूरा अधिकार है। पीठ ने कहा कि उम्मीदवारों को निर्वाचन आयोग को एक फॉर्म भर कर देना होगा जिसमें उनका आपराधिक रिकॉर्ड और आपराधिक इतिहास ‘‘बड़े बड़े अक्षरों’’ में दर्ज होगा।

न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया। पीठ ने सभी राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने उम्मीदवारों के संबंध में सभी सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। न्यायालय ने कहा कि उम्मीदवार अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में राजनीतिक दलों को पूरी सूचना दें।

संविधान पीठ ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों से जुड़े उम्मीदवारों के रिकॉर्ड का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से गहन प्रचार किया जाना चाहिए। अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल की इस दलील पर कि अदालत को अधिकारों के विभाजन के संदर्भ में लक्ष्मण रेखा पार नहीं करना चाहिए, पीठ ने संज्ञान लेते हुए कहा कि गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने के लिए वह विधायिका के कार्य क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है।

हालांकि, पीठ ने कहा कि देश को ऐसे कानून का बेसब्री से इंतजार है और विधायिका को इस समस्या से निपटने के लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी चाहिए। आपराधिक मामलों में मुकदमों का सामना कर रहे जनप्रतिनिधियों को आरोप तय होने के स्तर पर चुनाव लड़ने के अधिकार से प्रतिबंधित करना चाहिए या नहीं इस सवाल को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने आज यह फैसला दिया।

मौजूदा कानून के तहत किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धी होने के बाद ही जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि या उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है। पीठ ने इस संबंध में 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

 

 

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