प्रख्यात शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का आज नई दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
सधे हुए गले से तरन्नुम में फरमाइश दर फरमाइश गीत-गज़ल सुनाना…। मंच पर बेकल हों तो मजाल है भला कोई हूटिंग कर दे। अपने मुरीदों को कभी मायूस न करने की खासियत थी बेकल की…। पर, अफसोस कि शनिवार को तड़के वह दुनिया को अलविदा कह अपने मुरीदों को मायूस कर गए। बेकल उत्साही का शव दिल्ली से बलरामपुर लाया जाएगा और वहीं उनको सुपुर्द-ए-ख़ाक खाक किया जाएगा।
बेकल उत्साही का जन्म एक जून 1924 को हुआ था। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के उतरौला के रहने वाले उत्साही का असली नाम शफी खान था। गुलामी के वक्त अपने गीतों की वजह से उत्साही को कई बार जेल भी जाना पड़ा। उत्साही को कांग्रेस की ओर से 1986 में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था।
बेकल उत्साही ने हिन्दी भाषा की हिफाजत भी बखूबी की। वर्ष 1989 से 1992 के बीच राज्यसभा में बतौर सांसद उन्होंने दक्षिण में घूम-घूम कर अवधी और हिन्दी के कवि सम्मेलन करवाए। उस वक्त दक्षिण भारत में हिन्दी का विरोध हो रहा था। बेकल साहब की रोमाण्टिक रचनाओं को कई गायकों ने आवाज में पिरोकर उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया है।
गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल बेकल अब हमेशा-हमेशा के लिए हमसे विदा हो गए और छोड़ गए हमारे बीच अपनी नज्में और उनसे जुड़ी कुछ यादें।