एक मकान न छोड़ने की जिद पर अड़ी कहानी की नायिका जिसे लोग पेशेवर अलग-अलग गंदे नामों से पुकारते है जब अपनी पर आ जाए तो जान देने और लेने से भी पीछे न हटे। विद्या बालन की खत्म हुई आभा और कमजोर पड़े अभिनय के बीच ‘बेगम जान’ में उनका अभिनय फिर से ये साबित कर देगा कि वह जानती है किरदार में उतरना किसे कहते है।
पाकिस्तान और हिन्दुस्तान पृष्ठभूमि में रची गई ‘बेगम जान’ की कहानी कई मायनों में व्यवसायिक सिनेमा से अलग नज़र आती है।फिल्म की पृष्ठभूमि में कोठे पर रहने वाली 11 महिलाएं हैं। विभाजन के बाद जब नई सीमा रेखा बनती है तो उस कोठे का आधा हिस्सा भारत में पड़ता है और आधा पाकिस्तान में।
फिल्म न सिर्फ अपने सेट, कास्ट्यूम, साउंड की वजह से अलग नज़र आ रही है बल्कि पीरियड फिल्मों को जिस माहौल की आवश्यकता किसी कहानी को रचने के लिए होती है। ‘बेगम जान’ अपने वो सारे पूरी करती नज़र आती है।
1947 के दौर में भारत-पाकिस्तान बटवारें पर बनी इस कहानी को बेहद बोल्ड अंदाज में दिखाया गया है लेकिन पहलाज निहलानी के रहते मुमकिन नहीं दिखाई पड़ता कि फिल्म जैसी बनी है वैसी ही रिलीज कर दी जाए। फिल्म का ट्रेलर बेहद बोल्ड नज़र आ रहा है। श्रीजीत मुखर्जी की बेगम जान’ बंगाली फिल्म ‘राजकाहिनी’ का हिंदी रीमेक है, जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला था। ‘बेगम जान’ में विद्या बालन एक तवायफ के किरदार में हैं। विद्या के संवाद भी उनके किरदार जैसे ही बोल्ड हैं।