केंद्र की मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की अलोचना करने वाले देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यन ने रविवार को आगाह किया कि कृषि और वित्तीय व्यवस्था के दबाव में होने से भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ समय के लिए नरमी के दौर में फंस सकती है। अपनी किताब ‘ऑफ काउंसेल: द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेटली इकॉनमी’ के विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने से देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार मंद हुई।
(PTI File Photo)उन्होंने कहा कि बजट में गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) से राजस्व वसूली का लक्ष्य तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘बजट में जीएसटी से वसूली के लिए जो लक्ष्य रखा गया है, वह व्यवहारिक नहीं है। मैं स्पष्ट तौर पर कहूंगा कि बजट में जीएसटी के लिए अतार्किक लक्ष्य रखा गया है। इसमें 16-17 प्रतिशत (वृद्धि) की बात कही गई है।’ सुब्रमण्यन ने कहा कि जीएसटी की रूपरेखा और बेहतर तरीके से तैयार की जा सकती थी। वह जीएसटी के लिए सभी तीन दर के पक्ष में दिखे।
अर्थव्यवस्था के बारे में उन्होंने कहा, ‘हमें कुछ समय की मंदी के लिए खुद को तैयार रखना होगा। मैं कई कारणों से यह बात कह रहा हूं। सबसे पहले तो वित्तीय प्रणाली दबाव में है। वित्तीय परिस्थितियां बहुत कठिन हैं। ये त्वरित वृद्धि के लिए अनुकूल नहीं है।’ बकौल सुब्रमण्यन कृषि क्षेत्र अब भी दबाव में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले साल होने वाले चुनाव के दौरान विभिन्न पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र में सार्वभौमिक न्यनूतम आय (यूबीआई) के मुद्दे को शामिल किया जाएगा।
#WATCH: "GST was certainly not a failure but it could have more along the lines of what I had initially recommended," says Former CEA Arvind Subramanian in Delhi pic.twitter.com/o6qW6QhhOj
— ANI (@ANI) December 9, 2018
इसी दौरान सुब्रमण्यन ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में कटौती नहीं की जानी चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि आरबीआई की अतिरिक्त आरक्षित राशि का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के पूंजीकरण के लिए करना चाहिए ना कि सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए। नीति आयोग द्वारा हाल में जारी संशोधित जीडीपी आकंड़े के बारे में सुब्रमण्यन ने कहा कि इससे कई सारे सवाल उत्पन्न हो गए हैं। उन्होंने कहा, ‘आप उस अवधि के अन्य संकेतकों पर ध्यान देते हैं तो आप उनमें और हालिया आंकड़ों में बहुत अधिक अंतर पाते हैं। इसे स्पष्ट किए जाने की जरूरत है।’
बता दें कि अभी कुछ दिनों पहले ही अरविंद सुब्रमण्यन ने पहली बार केंद्र की मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर अपनी चुप्पी तोड़ी थी। उन्होंने नोटबंदी को देश के लिए जबरदस्त मौद्रिक झटका करार दिया था, जिससे देश की विकास दर पटरी से उतर गई। उन्होंने कहा था कि नोटबंदी बड़े मात्रा में एक सख्त कानून था और इससे मौद्रिक (मॉनेटरी) झटका लगा। इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था 7 क्वार्टर के सबसे निचले स्तर 6.8 प्रतिशत पर आ गई। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से पहले यह 8 प्रतिशत थी।
बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर करने की घोषणा की थी। उस वक्त बाजार में चल रही कुल करेंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा यही नोट थे। जानकारों ने तभी नोटबंदी के फैसले के कारण अर्थव्यवस्था की हालत बुरी होने, बेरोजगारी बढ़ने और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी कम होने की आशंका जताई थी और नोटबंदी के बाद जितने भी रिपोर्ट आए उसमें यह साबित भी हुआ।
बता दें कि अरविंद सुब्रह्मण्यम ने इसी साल जून में अचानक अपना पद छोड़ने का फैसला किया था। उनका कार्यकाल 2019 तक था पर पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने अपना पद छोड़ दिया था। बता दें कि जब नोटबंदी लागू की गई थी तब अरविंद सुब्रमण्यन भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे।