उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की एंटी-रोमियो ड्राइव क्यों सफल नहीं हो रही ?

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एक लड़की ने बताया कि किस तरह बस स्टॉप पर एक पुराने दोस्त के मिल जाने पर जब वो उससे बात करने लगी तभी वहाँ पुलिस वालों ने उन्हें पकड़ लिया और घर वालों को ‘शिकायत’ करने की धमकी दी। घबराई हुई लड़की ने जब 500 रुपए दिए तब जा कर पुलिस ने उन्हें छोड़ा।  वहीं कुछ लड़कियों ने बताया कि उनका अपने भाईयों या दोस्तों के साथ पब्लिक में जाना दुशवार हो गया है। कहीं भी कभी भी पुलिस उनसे पूछताछ करने लगती है। सुरक्षित की जगह लड़कियाँ डरा हुआ महसूस कर रही हैं।

दूसरी ओर कोई दिन नहीं जाता जब उत्तर प्रदेश से किसी महिला के रेप व क़त्ल की भयानक ख़बर नहीं आती। ऐसे में इस मुहीम की सफलता पर गम्भीर सवाल उठते नज़र आ रहे हैं। महिला सुरक्षा को समझने वाला कोई भी व्यक्ति ये बता सकता है कि ऐंटी-रोमीओ ड्राइव इस दिशा में एकमात्र व दीर्धकालिक उपाय नहीं हो सकता। इसीलिए इस तरह की कई मुहीम देश के अलग अलग हिस्सों में असफल हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में जहाँ पुलिसकर्मियों का पहले से ही अभाव है, ये सम्भव नहीं कि एक बड़ी संख्या को इसी काम पर लगा दिया जाए।

महिला सुरक्षा के लिए एक सोची समझी व्यापक नीति की ज़रूरत है। पुलिस पेट्रोलिंग इसका एक हिस्सा है लेकिन ये अकेले काफ़ी नहीं है। ज़रूरी है कि लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाया जाए और उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना करना सिखाया जाए। वहीं कॉलेज व स्कूल के स्टाफ़ को भी इस बारे में जागरूक व सशक्त करने की आवश्यकता है। हर स्कूल कॉलेज में कम्प्लेंट cell की व्यवस्था होनी चाहिए व प्रशासन व पुलिस के बीच नियमित संचार का माध्यम होना चाहिए।

वहीं लड़कियों के शिकायत दर्ज करवाने के लिए आसान व सुरक्षित माध्यम की भी ज़रूरत है। इस संदर्भ में पिछली अखिलेश सरकार की हेल्पलाइन एक सराहनीय क़दम है। इसके तहत महिलाएँ फ़ोन करके अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं जिसमें उनकी पहचान गोपनीय रखी जाती है। वहीं शिकायत दर्ज करने का काम भी महिला कर्मियों को दिया गया है ताकि बिना किसी झिझक या शर्मिंदगी के महिलाएँ अपनी परेशानी बता सकें।

वैसे तो इस हेल्पलाइन के माध्यम से क़रीब 6 लाख महिलाओं की तकलीफ़ का समाधान किया गया है लेकिन पिछली सरकार इसे लोगों के बीच पहुँचाने में ज़्यादा सफल नहीं हुई।

अगर इसकी जानकारी हर एक महिला तक पहुँचाई जाए तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा क्यूँकि अक्सर महिला सुरक्षा के मुद्दे में बहुत बड़ी बाधा महिलाओं द्वारा शिकायत ना करना रहती है। साथ ही स्कूल, कॉलेज या पंचायत के माध्यम से लड़कियों के परिवारों को भी जागरूक करने की ज़रूरत है। उन्हें ये समझना ज़रूरी है कि वह अपनी बेटियों की बात सुनें और उनसे बेझिजक उनकी समस्याओं पर चर्चा करें। साथ ही साथ उन्हें ये विश्वास दिलाना भी ज़रूरी है कि पुलिस व प्रशासन उनकी मदद के लिए प्रतिबद्ध है।

वहीं दूसरी ओर इस काम में लगे पुलिसकर्मियों को उपयुक्त प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है। बिना तैयारी व जल्द बाज़ी में चलायी ऐंटी-रोमीओ ड्राइव का नतीजा हम देख ही चुके हैं। शौहदों के हौसले महिलाओं के डर व उनके चुप रहने से बुलंद होते हैं। ये हौसले कमज़ोर किए बिना इस समस्या से निजात नहीं पाया जा सकता। अगर सरकार महिला सुरक्षा को ले कर गम्भीर है तो उसे अपनी ग़लती को समझकर अपनी नीति में सुधार लाना होगा। इस समस्या के समाधान के लिए पुलिस की सतर्कता व दक्षता और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना दोनो ही बराबर ज़रूरी हैं।

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