भारतीय जनता पार्टी के घोषणा केबहुचर्चित बिन्दु एंटी रोमियो दल की शुरुआत को 2 महीने हो चुके हैं। जब चुनाव के दौरान ये मुहीम शुरू करने की बात करी गयी थी तो किसी को नहीं पता था कि असल में इसका स्वरूप क्या होगा। कई लोग इसे संदेह से देख रहे थे क्योंकि भाजपा की राजनीति को समझने वाले लोग जानते थे कि ये अल्पसंख्यकों का उत्पीड़ित करने का एक नया तरीक़ा बन सकता है।
वहीं दूसरी ओर कई लोग इसे लेकर सकारात्मक भी थे क्यूँकि छेड़छाड़ की समस्या पूरे देश में महिलाओं के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय है। योगी जी के मुख्यमंत्री बनते ही बहुत ज़ोर शोर से इस मुहीम का आग़ाज़ किया गया। लगता था मानो पूरा पुलिस बल ही इस मुहीम को सफल बनाने में जुट गया हो। हर चैनल हर अख़बार इस मुहीम के हर पहलू को cover करने की दौड़ में लग गया लेकिन पहले ही दिन से कुछ परेशान करने वाली ख़बरें सामने आने लगी।
हालाँकि कॉलेज व स्कूलों के बाहर भारी संख्या में पुलिस वाले दिखायी दिए लेकिन दूसरी ओर पुलिस के द्वारा उत्पीड़न की ख़बरें भी लगातार आती रहीं। कहीं प्रेमी जोड़ों को उत्पीड़ित व शर्मिंदा किया जा रहा था तो कहीं साथ जा रहे भाई बहन को पुलिस उठा ले जा रही थी. राजधानी लखनऊ में पिक्चर देखने जा रहे एक जोड़े को पुलिस थाने में ले गयी तो दूसरी ओर मार्केट में ख़रीदारी करने आए लड़कों को उठा लिया गया। यहाँ तक कि शादी शुदा जोड़े भी इसके लपेटे में आते दिखे।
देखते ही देखते हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठन भी इस मुहीम में शामिल हो गए। अब नैतिक पुलिसकरण के रूप में एक नयी समस्या का आरम्भ हो गया। साथ घूमने या दिखने वाले हर लड़का लड़की निशाने पर थे। कहीं कॉलेज में टीचर से नोट्स लेने गयी छात्रा चपेटे में आई तो कहीं अपने ही घर के अंदर साथ मौजूद प्रेमी जोड़ा। ऐंटी रोमीओ ड्राइव कई लोगों के लिए एक भयानक सपना बन गयी। वहीं धीरे धीरे मीडिया की भी दिलचस्पी इस मुहीम से ख़त्म हो गयी।
सरकार के दो महीने पूरे होने पर कई पत्रकारों ने एक बार फिर इस मुहीम पर नज़र डाली तो उन्हें अलग अलग नतीजे देखने को मिले। कई जगह लड़कियों ने बताया कि उनके कॉलेज के बाहर अब पुलिस वाले तैनात रहने लगे हैं और शौहदों का घूमना कम हो गया है। वहीं दूसरी ओर कुछ लड़कियों का कहना था कि अब पुलिस की सतर्कता में वापस कमी आ गयी है और पुलिस वालों ने इस मुहीम को भी धंधा बना डाला है।
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