नोटबंदी की मार झेल रहा छत्तीसगढ़ के राजनंद गांव का एक आंगनवाड़ी केन्द्र जहां पर्याप्त मात्रा में कैश नहीं होने के कारण आंगनवाड़ी में बच्चों का पेट भर खाना देना भी मुश्किल हो रहा है।
‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की एक ख़बर के मुताबिक छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव ज़िले में नगदी की समस्या से जूझ रही आंगनबाड़ियां बच्चों को भोजन नहीं करा पा रही हैं जिसके कारण बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं। पिछले आठ महीनों की औसत हाज़िरी की तुलना में नोटबंदी के बाद नवंबर महीने में आंगनबाड़ी में आनेवाले लड़कों की संख्या में 16 फ़ीसदी और लड़कियों में 14 फ़ीसदी की कमी हुई है।
राजनंद गांव में आंगनवाड़ी से जुड़ी कार्यकर्ता निशा चौरसिया बामुश्किल बच्चों के लिए खाना उपलब्ध कराने के प्रयासों में लगी हुई है। निशा बताती है कि स्वयंसेवी संस्था ने सभी लोगों से उधार लिए, बैंकों की लाइनों में खड़े रहे, अधिकारियों से मदद मांगी और यहां तक कि बच्चों और मां बनने वाली महिलाओं को खाना खिलाने के लिए अपनी जमा पूंजी भी खर्च कर दी।
मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, वह कहती हैं कि हमने किसी तरह मैनेज किया, लेकिन फिर भी खाने की कमी पड़ सकती है। आईसीडीएस शिशु और बाल पोषण कार्यक्रम के तहत इस व्यवस्था को चलाया जाता है लेकिन 500 और 1000 के नोटों के बंद हो जाने पर आईसीडीएस नेटवर्क मुश्किल में आ गया और बच्चों के लिए खाने की कमी पड़ गई।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा चलाए जाने वाले आईसीडीएस कार्यक्रम के मासिक आंकड़ों के मुताबिक नवंबर में बच्चों को आंगनवाड़ी से मिलने वाले खाने में 6 प्रतिशत की गिरावट आई। इसका मतलब है कि करीब 16 लाख बच्चों को जो अनाज और सब्जियां दी जानी चाहिए थी वह उन्हें नहीं मिल पाईं। इम्यूनिटी शॉट्स नहीं मिलने के कारण उनकी स्वास्थ्य जांच भी नहीं हो पाई।
अगर पिछले आठ महीनों की बात करें तो नवंबर में आंगनवाड़ी में बच्चों की संख्या में भी गिरावट देखी गई। यहां 16 प्रतिशत लड़के और 14 प्रतिशत लड़कियां नहीं आईं थीं। इस संस्था से करीब 23 लाख लड़के और 19 लाख लड़कियां जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा कार्यक्रम के लिए फंड में भी कमी आई है।
पीएम मोदी ने नोटबंदी के परेशानियों से निजात दिलाने की खातिर 50 दिनों की मौहलत देश की जनता से की थी। जिसकी मियाद में केवल एक हफ्ता की शेष रहा है। जबकि इसके विपरित हालात सामान्य अवस्था में दिखाई नहीं दे रहे इसमें चाहे मरने वालों की संख्या में इजाफा हो, एटीम पर कैश की किल्लत हो या रिजर्व बैंक द्वारा बार-बार नियम बदलने की कवायद हो।