उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में पांच वर्षीय एक बच्ची की कथित रूप से भूख और बुखार से मौत हो गई। आगरा के बरौली अहीर ब्लॉक के नागला विधिचंद गांव के रहने वाला सिंह परिवार एक महीने से बेरोजगार था। काम ठप पड़ चुका था और घर पर एक हफ्ते से खाने का कुछ भी नहीं था।
बच्ची की 40 वर्षीय मां शीला देवी अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए किसी भी तरह का काम करने को तैयार हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, शीला देवी कहती हैं, “मैं उसके खाने के लिए कुछ जुगाड़ नहीं कर पाई। वह दिन-पर-दिन कमजोर होती जा रही थी। उसे तीन दिन से बुखार था और अब मैंने उसे खो दिया।” शुक्रवार की रात उन्होंने बच्ची को दफना दिया। हालांकि, परिवार अभी भी धन के अभाव में भूखा प्यासा बैठ कर बेटी की मौत का शोक मना रहा है।
परिवार की मदद करने वाले पड़ोसी हेमंत गौतम ने बताया कि स्थानीय अधिकारियों ने लॉकडाउन संकट के दौरान परिवारों को खाद्य सुरक्षा देने में मदद नहीं की। शनिवार को जिला प्रशासन ने कहा कि मामले की पड़ताल की जाएगी और पता लगाया जाएगा कि चूक कहां पर हुई।
जिलाधिकारी प्रभु एन सिंह ने कहा, ‘हमने मामले मे संज्ञान लिया है। बच्ची की मौत की जांच के आदेश दिए गए हैं।’ डीएम ने कहा, ‘परिवार ने शव को दफना दिया, जो कि उन्हें नहीं करना चाहिए था। पोस्टमॉर्टम से मौत की वजह स्पष्ट हो सकती थी।’ हालांकि, भूख से मौत की स्थिति की स्पष्ट व्याख्या हमेशा से मुश्किल काम रहा है।
दरअसल, कोरोना संक्रमण के चलते हुए लाकडाउन ने मध्यम वर्गीय और निचले तबके के आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। बेरोजगारी का आलम यह है कि मजदूर तबके के लोगों को परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी एवरेस्ट फतेह करने जैसा लगने लगा है।