स्वच्छ भारत के 3 सालः 50 लाख से अधिक शौचालयों की और आवश्यकता, जबकि अधूरे बने हुए उपयोग से बाहर

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भारत में 49.62 लाख से अधिक शौचालय हैं- 2014 में यह संख्या 38.7% से बढ़कर 2017 में 69.04% तक पहुंच गई और भारत के 649,481 गांवों में से 2,50,000 गांवों को खुले शौच से मुक्त घोषित किया गया है। लेकिन इन के बावजूद गांवों के 150,000 (63%) शौचालयों के दावे सत्यापित नहीं किया गया है और यह जानने का कोई तरीका भी नहीं है कि बाकी नए शौचालयों का उपयोग किया जा रहा है या नहीं।

यह स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत मिशन) के तहत आने वाले सरकारी आंकड़ों की संख्या है जो भारत सरकार के विश्लेषण का निष्कर्ष है। इस मिशन का 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था, जिसका लक्ष्य और उद्देश्य भारत को 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से मुक्त करने का था।

विश्व बैंक ने इस योजना के कार्यान्वयन को श्मामूली असंतोषजनकश् कहा है। हालांकि, एक स्वायत्त सरकारी निकाय- ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ ने 2017 द्वारा आयोजित 1 अगस्त 2017 के सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण परिवारों में 10 में से नौ (91.29%) इन शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं।

15 अगस्त, 2014 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) का शुभारंभ इन शब्दों के साथ किया था कि भाईयों और बहनों, हम 21 वीं सदी में रह रहे हैं। क्या हमें यह बात कभी हमें दुखी नहीं करती है कि हमारी मां और बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है?

क्या महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है? गांव की गरीब महिलाएं रात होने का इंतजार करती हैं, क्योंकि जब अंधेरा होगा वे बाहर शौच करने के लिए जा सकेगी। वे दिनभर इस शारीरिक यातना से गुजरती है। इस बात से कितनी बीमारियों पैदा हो सकती है। क्या हम अपनी मां और बहनों की गरिमा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं?

इस मिशन को दो भागों में विभाजित किया गया था। ग्रामीण और शहरी

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)

2 अक्टूबर 2014 को ग्रामीण परिवारों में व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) शुरू हुआ जिसका 38.7% था।

2017 में 249,811 गांव खुले में शौच से मुक्त (ODF) थे, जिनमें से 63% (157,935) आधिकारिक रूप से सत्यापित हुए।

आधिकारिक तौर पर इसमें 207 जिले रहे थे जिनमें से 62% (127) के तौर पर ओडीएफ द्वारा सत्यापित किए गए थे।

उन गांवों को खुले से शौच मुक्त माना जाता है, जब इस प्रकार की कोई चीजें न दिखाई जैसे सार्वजनिक जगहों पर पड़े हुए मल-मूत्र, मवेशियों के मल, सतह की मिट्टी, भूजल या सतह के पानी का इस प्रकार से मल-मूत्र से सीधा कोई सबंध, प्रत्येक घर पर या सार्वजनिक ध् सामुदायिक संस्था द्वारा संचालित शौचालय अथवा इस प्रकार के मल से निपटान के लिए सुरक्षित तकनीक का उपयोग किया जाना, सार्वजनिक स्थानों पर फैली मल की गंध आदि। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय (एमओडीडब्ल्यूएस) वेबसाइट पर खुले से शौच मुक्त होने की यहीं प्रमाणिकता बताई गई है।

जनवरी 2015 से दिसंबर 2016 के बीच आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आंकड़ों के मुताबिक 2016 तक कुल ग्रामीण परिवारों 36.7%  ने बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का इस्तेमाल किया।

हालांकि, सरकार के आंकड़ों ने तीन साल से काफी प्रगति की है, विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से अधिकांश दावे सत्यापित नहीं किए गए थे। सेंटर फॉर पॉलिसी रीसर्च (CPR), जो एक थिंक टैंक है,  और जवाबदेही पहल के निदेशक, CPR व उनके कार्यक्रम के साथी, अवनी कपूर ने कहा, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ओडीएफ घोषणाओं की स्वयं की रिपोर्ट है। यदि हम आज (29 सितंबर, 2017) की संख्या को देखते हैं।

जबकि 252,430 गांवों को ODF घोषित किया गया है, केवल 1.5 लाख ही सत्यापित किए गए हैं जिसका अर्थ है कि लगभग 40% अभी तक सत्यापित नहीं हुए हैं। राज्यों को अपनी स्वयं की सत्यापन प्रक्रिया को परिभाषित करने की अनुमति है, कपाड़ ने कहा, जो मानकीकृत सत्यापन का समर्थन नहीं करता है।

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