जेल की काल कोठरी में गुजारे तेईस साल ने छीना निर्दोष निसार की ज़िंदगी का उजाला, कहा अब वो जिन्दा लाश के सिवा कुछ नही

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तेईस साल पहले वो बमुश्किल 20 साल का था। कर्नाटक में फार्मेसी की पढ़ाई के दौरान एक दिन अचानक पुलिसवालों ने रिवॉल्वर से डराकर निसार को गिरफ्तार कर लिया। और यही से न सिर्फ निसार की ज़िंदगी के मायने बदल गए बल्कि उसकी जवानी के सारे रंग ही उड़ गए।

बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली वर्षगांठ पर 5-6 दिसम्बर,1993 की रात कोटा, हैदराबाद, सूरत, कानपुर और मुंबई में हुए रेल धमाकों में शामिल होने के फर्जी आरोप में निसार-उद-दीन अहमद ने अपनी ज़िंदगी के 23 साल गुजारे जेल में गुजारे।

तेईस साल तक क़ानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिर सुप्रीम कोर्ट ने निसार-उद-दीन अहमद को निर्दोष क़रार दिया। जेल में बिताए इस लंबे वक़्त ने निसार की ज़िंदगी को जड़ से उखाड़ दिया। जेल से रिहाई के बाद इंडियन एक्सप्रेस को निसार ने बताया कि आज वो 43 साल का है। निसार ने अपनी छोटी बहन को आखिरी बार जब देखा था तब वो केवल 12 साल की थी, लेकिन आज खुद निसार की बहन की बेटी बारह साल की हो चुकी है।

निसार ने आगे बताया कि उससे सिर्फ दो साल छोटी उसकी कज़न आज दादी बन चुकी है। निसार-उद-दीन अहमद के मुताबिक जेल के अंधेरों में उसकी कई पीढ़िया निगल ली। निसार के मुताबिक उसके अब्बू अपनी ज़िंदगी भर की कमाई कोर्ट कचेहरी में लगाकर उसे निर्दोष साबित करते करते साल 2006 में इस दुनिया से अधूरी तमन्ना के साथ रुखसत हो गए।

निसार-उद-दीन अहमद के मुताबिक उस परिवार का दर्द, तकलीफ़ कोई नहीं समझ सकते जिसके दो जवान बेटे फर्जी केस में जेल में बंद हो। गौरतलब है कि नासिर का भाई ज़हीर भी उम्र कैद काट रहा था। लेकिन फेफडों के कैंसर की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ज़हीर को साल 2008 में ज़मानत दे दी।

ज़मानत पर बाहर आने के बाद ज़हीर ने ही नासिर के केस की पैरवी की और आखिरकार खुद और नासिर के अलावा दो और लोगो को सुप्रीम कोर्ट से निर्दोष साबित कराया। हैदराबाद से लेकर अजमेर के टाड़ा कोर्ट में लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगो को निर्दोष क़रार दिया।

जेल की काल कोठरी से रिहाई के बाद आज ये लोग खुश तो है लेकिन निसार की ज़िंदगी के 23 साल का हिसाब किसी के पास नहीं है। न पुलिस के पास, न अदालत के पास, न सरकार के पास और न ही समाज के पास।

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