उत्तर प्रदेश के एक गाँव में चार बीघे ज़मीन का मालिक किसान देवराज यादव (64) जहां विकलांगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं, वहीं बर्बाद फसल और सूखे के दंश से परेशान आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए सबक भी हैं। इनका दाहिना पैर करीब 40 साल पहले डॉक्टरों ने जांघ से काट दिया था। परिवार में दो वक्त की रोटी का संकट आया तो हिम्मत नहीं हारी और कटे पैर में बांस की लाठी बांधकर वह अन्य किसानों की भांति खेत में हल जोत रहें हैं|
देवराज ने कहा , “करीब 40 साल पहले खेत में हल चलाते समय बैल के लात मारने से लगी चोट से दाहिने पैर में सड़न पैदा हो गई थी। कानपुर के डॉक्टरों ने जांघ के पास से उसका पैर काट कर अलग कर दिया।”
वह बताते हैं कि एक दिन खेत की मेड़ पर बैठकर खेती करने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक लाठी बांधकर हल चलाने का प्रयास किया। कई बार गिरने, चोट खाने के बाद अब अन्य किसानों की भांति अपने खेत में हल चलाकर परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेता हूं। उसके पास सरकारी कर्ज नहीं है, पर गांव के साहूकारों का 25 हजार रुपये पांच रुपये प्रति सैकड़ा ब्याज की दर वाला कर्ज है..फिर भी भरोसा है कि हिम्मत न हारने वाले की ऊपर वाला भी मदद करता है, आत्महत्या करना बुजदिलों का काम है।”
उसकी पत्नी रानी बताती है कि उसके पति अब एक पैर व लाठी के सहारे रोजमर्रा के सारे काम कर लेते हैं। चार बीघे की फसल से उनके परिवार का आराम से बसर हो जाता है। सरकारी मदद के नाम पर उसके पति को सिर्फ 500 रुपये प्रति माह पेंशन मिल रही है।