मनोहर पर्रिकर का आमिर खान पर बयान, क्या मोदी को चुप्पी नहीं तोड़नी चाहिए?

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आज अखबार के पहले पन्ने पर दो खबरें पढ़ी और न जाने क्यों लगा इन दोनों में एक लिंक है। पहले इस कथन पर गौर करते हैं।

अगर आप एक बयान को अलहदगी में पढ़ें, तो आपको ऐसा लग सकता है के ये बयान किसी ‘उग्र’ गुट के कार्यकर्ता ने दिया होगा। आप बिलकुल भी कल्पना नहीं कर सकते के ये बयान, देश के रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने दिया होगा।

और जब रक्षा मंत्री कहते हैं तो ‘टीम’ से सन्दर्भ सिर्फ कोई कमांडो यूनिट ही निकला जा सकता है। निकाला जाना भी चाहिए। मगर यहाँ रक्षा मंत्री की टीम ने न सिर्फ आमिर खान जैसे सॉफ्ट टारगेट को अपनी ‘टीम’ के ज़रिये निशाना बनाया, बल्कि जिस कंपनी का वो विज्ञापन कर रहे थे, जिसका आमिर खान के बयान से कोई लेना देना नहीं है, उसे भी सबक सिखाने की बात कही रक्षा मंत्री ने।

सवाल ये के क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने रक्षा मंत्री के इस बयान से सहमत हैं? खासकर तब जब वो “मेक इन इंडिया“ की दमदार अपील कर रहे हों? क्या मोदी इस बात के इत्तफाक रखते हैं के देश के सुपरस्टार को पहले तो प्रजातांत्रिक भारत में अपनी बीवी की बात सार्वजनिक करने का हक नहीं है और दूसरा, इसकी सज़ा उस कंपनी को दी जाए, जिसका वास्ता आमिर खान के निजी विचारों से नहीं? मैं जानना चाहूँगा के देश में निवेशक कितना आश्वस्त महसूस करेंगे अगर देश के रक्षा मंत्री एक ऐसे ‘अदृश्य’ कमांडो यूनिट की बात करेंगे जो ऐसी कम्पनीज को सबक सिखा रही है?

आप इस बात का अर्थ समझ रहे हैं ? आप इसके पीछे छिपा संदेश समझ रहे हैं? अगर आमिर खान की बीवी अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर आशंकित है तो वो न सिर्फ चुप रहे बल्कि ऐसा सोचने की कल्पना भी न करे, क्योंकि ये देशद्रोह है और रक्षा मंत्री आमिर खान और उनसे जुडी तमाम कंपनियों को इसका सबक सिखायेंगे। ऐसा है क्या ? कम से कम अब प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर अपनी खामोशी तोडनी चाहिए।

कम से कम अब ये सवाल उठाना स्वाभाविक है के क्या वो ऐसी ‘टीम्स’ (जिसका ज़िक्र परिकर ने किया) के लिए, देश में निवेश, मेक इन इंडिया और प्रजातंत्र की बलि देने को तैयार हैं? क्या वक़्त नहीं आ गया है के प्रधानमंत्री इस मुद्दे को लेकर एक कड़ा और निर्णायक सन्देश दे के वो इन टीम्स के साथ हैं या जो वादा उन्होंने देश को दो साल पहले दिया था, उस पर कायम हैं?

आज अखबार में एक और खबर की तरफ मेरा ध्यान गया। बीजेपी के दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री से अपील की है के गौ रक्षा के नाम पर दलितों पर किये जा रहे हमलों पर प्रधानमंत्री और पार्टी कड़ा सन्देश दे।

नगीना से पार्टी सांसद यशवंत सिंह, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, इटावा से सांसदअशोक कुमार दोहरे सब मानते हैं के गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों को इससे सख्ती से निपटना चाहिए और ऐसे गुटों को कड़ा संदेश भेजना चाहिए। कड़ा सन्देश ! अब बात करते हैं इस कड़े सन्देश की।

हाल में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को अपनी आगरा रैली रद्द करनी पड़ी थी, क्योंकि आगरा के 8 लाख दलित उन्हें कड़ा सन्देश देना चाहते थे। मरहम और गलती मानना तो दूर, आगरा से बीजेपी सांसद रामशंकर कठेरिया की मानें तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश चुनावों के लिए एक दलित उम्मीदवार पेश करना चाहिए।

यानी सतही बातें जितने भी करवा लीजिये, राजनीतिक खानापूर्ति जितनी करवा लीजिये, बीजेपी अब भी बुनियादी मुद्दे को संबोधित करने को राज़ी नहीं। और जब तक ये चलता रहेगा, बीजेपी को दुर्भाग्यवश दयाशंकर सिंह और मधु मिश्र जैसे नेताओं से ही पहचाना जायेगा। अब हो सकता है के इसके पीछे भी बीजेपी की दूरगामी राजनीति छुपी हो, हो सकता है के ये पार्टी को लखनऊ तक पहुँचाने में मदद करे, शायद इसलिए मोदी खामोश हैं और अमित शाह आगरा जाने से डरते हैं।

मैं अब भी मानता हूँ के मोदीजी के मन में देश का विकास सर्वोपरि है और वो देश को तरक्की के रास्ते  पर ले जाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। मुझे न जाने क्यों ये अब भी लगता है के गौ रक्षक दल जैसे सामाजिक संगठन (ये मेरे नहीं थावर चंद गहलोत के शब्द हैं), बजरंग दल, हिन्दू सेना ये सब अब भी हाशिये पर खड़े संगठन हैं जो नयी व्यवस्था में अपनी प्रासंगिकता ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं।

मगर! मगर जब मैं रक्षा मंत्री को ये बातें करते सुनता हूँ तो मुझे सरकार की नीयत  पर शक होने लगता है। तब मुझे लगता है के ये सब एक राजनीतिक प्लान का हिस्सा है। तब मुझे लगता है के इस सोच से इत्तफाक रखने वाले लोगों को शायद ऐसा लगता होगा के भारतीय जनमानस ऐसी सोच से इत्तफाक रखता है। शायद वो भी एंटी नेशनल पत्रकारों, अभिनेताओं, दलितों और मुसलमानों को सबक सिखाने के मूड में है। वर्ना और क्या वजह हो सकती है इस वहशीपने के जारी रहने और सरकार के ज़िम्मेदार लोगों द्वारा उसे सही ठहराने की कोशिश के पीछे ?

काश के परिकर इस मुद्दे को फिर से तूल देने के बजाय, अपनी उस दूसरे बयान पर स्पष्टीकरण देते जिसमें उन्होंने कहा के सेना को सिविलियन ऑपरेशन में लाठी चलाने के लिए नहीं रखा जा सकता। आपने कहा था के सेना एक हाथ पीछे बांधे ऐसे हालात में ज़मीन पर नहीं उतर सकती।

आपने सही कहा था के सेना को आपदा प्रबंधन के अलावा किसी और चीज़ के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ये बात अलग हैं सेना को न सिर्फ हरियाणा में तैनात किया गया, बल्कि अधिकतर समय एक हाथ पीछे बाँध कर रखा गया, क्योंकि कई इलाकों में पुलिस को आन्दोलनकारियों के सामने पलायन करते हुए देखा गया। शहर के हिस्से जल गए, मगर सेना की तैनाती क्यों हुई और हुई भी तो क्या इस्तेमाल हुआ, ये पहेली बनी हुई हैं।

(अभिसार शर्मा एक वरिष्ठ पत्रकार हैं! )

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