राष्ट्रवादी पत्रकारिता के दौर में 60 नवजातों की मौत पर एक पत्रकार की पीड़ा

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क्या तुममे हिम्मत है अभिसार शर्मा? तुम तो राष्ट्रवादी भी नहीं, मगर तुम्हारी बिरादरी के एक फर्जी राष्ट्रवादी ने कल प्राइम टाइम टीवी पर दहाड़ते हुए कहा, और गौर कीजिये, “ हम वन्दे मातरम पर चर्चा कर रहे हैं और आप बेवजह गोरखपुर में मारे गए 60 बच्चों की बात कर रहे हैं “ (अंग्रेजी से अनुवाद)।

इस चैनल के एंकर ने तो साफ कर दिया के उसकी प्राथमिकता क्या है। वो अब भी विपक्ष को ही कटघरे में रखेगा। वो अब भी सीमा पर रोज़ मर रहे सैनिकों को नज़रंदाज़ करेगा, और उसके लिए भी उदारवादियों, JNU के विद्यार्थियों और वामपंथियों को कटघरे में रखेगा, वो अब भी किसानों की दुर्दशा पे आँखें मूंदेंगा, वो गौ रक्षकों के आतंक पे खामोश रहकर अपनी नपुंसकता का परिचय देगा। मगर तुम? तुम, अभिसार शर्मा है दम?

है दम योगी सरकार से ये पूछना के आखिर 9 अगस्त को मुख्यमंत्री के BRD अस्पताल जाने के बावजूद, 60 बच्चों की बलि चढ़ गयी? है दम पूछने की के गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के ऑन रिकॉर्ड क़ुबूलने के बावजूद के मौत ऑक्सीजन सप्लाई काटने की वजह से हुई थी।

आखिर योगी सरकार क्यों कह रही है के ऐसा कुछ नहीं? झूठ क्यों? पर्देदारी क्यों? जब पुष्प गैस कम्पनी के मुलाजिम ने यह कह दिया है कि हम फरवरी 2017 से BRD अस्पताल को 68 लाख के बकाया बिल के भुगतान की अपील कर रहे थे, मगर उन्होंने कुछ नहीं किया… तो फिर योगी सरकार ऐसा क्यों कह रही है कि मौत ऑक्सीजन काटने से नहीं हुई?

क्या तुममे इस सरकार को इस शर्मनाक झूठ के लिए कटघरे में रखने के हिम्मत है अभिसार शर्मा? क्या तुम बाकी बाकी गैर BJP राज्यों की तरह यहाँ मुहीम चलाओगें या 30 घंटे में खामोश हो जाओगे? कुछ देर के लिए कल्पना कीजिये अगर यही घटना किसी गैर बीजेपी राज्य में होती, क्या तब भी यह कथित, फर्जी और राष्ट्रवादी चैनल खामोश रहते?

क्योंकि आक्रोश तो सुविधावादी है इनका। अब तो बिहार से जंगलराज खत्म हो गया है। जबसे नीतीश कुमार लालू की गोदी से BJP के पल्लू से बांध गए हैं। सारे पाप माफ़। अब मजाल है कोई बिहार के लिए जंगल राज शब्द का इस्तेमाल करे? ये बात अलग है कि अब बिहार में भी गौ रक्षकों ने अपना जौहर दिखाना शुरू कर दिया और सुशासन बाबु ने भी एलान कर दिया है कि मैं गौ रक्षा करूंगा। ये बात अलग है के RJD के नेता की हत्या को जंगल राज की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाएगा।

हिम्मत और हौसला ज़रूर पैदा करना अभिसार। क्योंकि हर वो शक्स जो अपने बच्चों से मुहब्बत करता है, वो गोरखपुर के अपराध से आक्रोशित होगा। जो शख्स ये कह सकता है कि हम वन्दे मातरम की चर्चा कर रहे हैं और आप गोरखपुर के मृत बच्चों की बात कर रहे हैं, कोई वहशी जानवर ही हो सकता है। इन्सान नहीं। उम्मीद करता हूँ तुम इंसानियत और वहशियत के बीच के फर्क को समझोगे अभिसार शर्मा।

उम्मीद है, बच्चों पे तुम्हारा दर्द इस बात पर निर्भर नहीं करेगा के राज्य में किसकी सरकार चल रही है। मैं उम्मीद करता हूँ के तुम गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों के स्वस्थ्य से साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ एक मुहीम चलाओगें। सबसे अहम् बात उम्मीद है तुम देश के प्रधान सेवक और राष्ट्रऋषि पर दबाव बनाओगें के इस बार लाल किले के प्राचीर से सतही बातों के बजाय असल मुद्दों की बात करेंगे।

किसानों,  दलितों, सामाजिक न्याय, मुसलामानों में असुरक्षा और स्वस्थ्य को लेकर चल रहे संकट की बात करेंगे।. आए दिन घर पहुँच रहे सैनिकों की लाशों की बात करेंगे। उम्मीद है के तुम उनपर दबावबनाओगें के वो ये समझा सकें कि नोटबंदी से आखिर हुआ क्या? GST व्यवस्था से व्यापारियों में इतनी अफरा तफरी क्यों? अनिश्चितता क्यों?

उम्मीद है मोदीजी एक शब्द, गोरखपुर में पसरे मौत के सन्नाटे के बारे में कहेंगे। उम्मीद है मुझे! और उम्मीद है तुम अभिसार शर्मा उन पर ये दबाव बनाओगे। क्योंकि यही तुमने उस वक़्त किया था जब कांग्रेस सत्ता में थी। तब तुम और तुम्हारी बिरादरी के कई पत्रकार अन्ना आन्दोलन में शरीक हो गए थे। तब किसी ने ने तुम्हे देश द्रोही नहीं कहा था।

तब प्रधानमंत्री कार्यालय से फ़ोन आते थे, मगर कोई तुम्हारे परिवार को टारगेट नहीं करता था। इस बार, ऐसा हो रहा है। मगर उम्मीद है तुम विचलित नहीं होगे। मुश्किल है, मगर उतना भी मुश्किल नहीं जितना गोरखपुर में मारे गए बच्चों के माँ बाप के लिए। उनका सोचो अभिसार शर्मा।

तुम्हारा दर्द, तुम्हारी तकलीफ शून्य है उनके सामने… एक बहुत बड़ा शून्य और यही शून्य उन माँ बाप की हकीकत भी है जिन्हें ज़िन्दगी भर, ज़िन्दगी भर अपने बच्चों के बगैर जीना है। रात भर विचलित रहा। इससे पहले ऐसा तब हुआ, जब पाकिस्तान में आतंकवादियों ने स्कूल में घुसकर आतंकवादियों का नरसंहार किया था।

तब कई दिनों तक बिखरा सा रहा था। वो तो पाकिस्तान के बच्चे थे। वो पाकिस्तान जो दुश्मन है, मगर गोरखपुर के 60 बच्चे तो हमारे अपने हैं न, है न? या फिर, उन्हें भी इसलिए भूल जाएँ, कि यहाँ एक राष्ट्रवादी सरकार है। यहाँ राम राज आ गया है…

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