प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सच, छत्तीसगढ़ में किसानों को मुवावज़े के नाम पर मिले 5 और 25 रूपये

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प्रधानमंत्री नरेंद्र ने जब केंद्र में सत्ता में अपना दो साल पूरा किया तो सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने केलिए कथित तौर पर एक हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा रूपये खरच कर डाले।

अपनी उपलब्धियों में मोदी सरकार ने किसान फसल बीमा योजना का जम कर गुणगान किया। इसके बहाने सरकार ने ये बताने की कोशिश की कि किस तरह सरकार किसानों के हिट की रक्षा केलिए प्रतिबद्ध है और कहा ये गया की इस योजना से किसानों द्वारा किये जाने वाले आत्माहत्या में कमी आएगी।

लेकिन छत्तीसगढ़ में किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा कभी न कराने का प्रण लिया है। वो इसलिए कि राज्य की रमन सिंह सरकार ने मुवावज़े के नाम पर किसानो को पांच और पचीस रूपये दिए हैं।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरिया ज़िले के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले साय ने क़सम खा रखी है कि वो अब सरकार की किसी भी बीमा योजना में शामिल नहीं होंगे.

साय कहते हैं, “अगर आपको मुआवज़े के नाम पर 25 रुपए दे दिए जाएं तो क्या आप उसे बीमा मानेंगे? छत्तीसगढ़ में धान के किसानों के साथ राज्य सरकार ने यही किया है. अब इस जन्म में तो हम फ़सल बीमा कराने से रहे. ”

रिपोर्ट के अनुसार खुद को ठगा महसूस करने वालों में साय अकेले किसान नहीं हैं। राज्य में ऐसे किसानों की संख्या हज़ारों में है, जिन्हें फ़सल बीमा के नाम पर 5 रुपए से लेकर 25 रुपए तक की रक़म थमा दी गई.

इस योजना के तहत राज्य के क़रीब 10 लाख़ किसानों ने फसलों का बीमा कराया. बदले में इन बीमा कंपनियों को 3 अरब 35 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म प्रीमियम के तौर पर मिली.

इस बीमा योजना के तहत कम या अधिक बारिश होने और फ़सल के बर्बाद होने पर किसानों को मुआवज़ा दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन फ़सल बर्बादी के नाम पर किसानों को जो मुआवज़ा मिला, वह चौंका देने वाला है.
बीबीसी के पास जो सरकारी दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक़ कोरिया ज़िले में बीमा का ज़िम्मा बजाज एलायंज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के पास था.

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