सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा है कि सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर मामले दर्ज करना बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में कटौती है। इसके साथ ही उन्होंने राजद्रोह के मामलों को लेकर भी बड़ी टिप्पणी की।

समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस लोकुर ने कहा कि, ‘हाल के समय में अभिव्यक्ति से संबंधित राजद्रोह के मामलों में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। राजद्रोह बेहद गंभीर आरोप है। हमारे यहां गांधी जी, लोक मान्य तिलक जैसे आजादी सेनानी थे, जिन पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए और आज आम आदमी पर राजद्रोह के आरोप लगाए जा रहे हैं।’
उन्होंने कहा, जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे तो 3700 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के 25 मामले दायर किये गए थे। जब हाथरस में एक युवती से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या की घटना हुई तो 23 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के 22 मामले दायर किए गए। उन्होंने सवाल किया कि सामूहिक बलात्कार और हत्या पर आपत्ति जताने वाला कोई व्यक्ति क्या राजद्रोह का आरोपी हो सकता है?
न्यायमूर्ति लोकुर ने मधु बाबू मेमोरियल लेक्चर के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं।
इसका आयोजन ओडिशा डायलॉग्स ने बुधवार को किया, जिसका विषय था, ‘क्या भारत की न्यायपालिका लोकतंत्र को बचा सकती है।’
उन्होंने उत्तर प्रदेश की एक हालिया घटना का उल्लेख किया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने 88 वर्षीय बीमार दादा के लिये ऑक्सिजन मुहैया कराने की मांग की थी। अमेठी पुलिस ने उसके खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और उस पर लोगों के बीच डर पैदा करने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर मदद मांगता है तो क्या वह कोई अपराध कर रहा है? ये तरीके और साधन हैं, जिनके जरिये वाक् एवं अभिव्यक्ति की आजादी में कटौती की जा रही है।’ जस्टिस लोकुर ने न्यायपालिका की हालत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका को पहले अपने घर को व्यवस्थित करना चाहिए।’