उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपियों की तस्वीरें सड़कों पर लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि, यूपी की योगी सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ में सीएए-विरोधी प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ के आरोपियों के पोस्टर लगाने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई का समर्थन करने के लिए फिलहाल कोई कानून नहीं होने की बात करते हुए गुरुवार को इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और रजिस्ट्री को मामले के रिकॉर्ड प्रधान न्यायाधीश के सामने रखने के लिए कहा।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका को बड़ी पीठ सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाए जाने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामले पर विस्तार से विचार करने की जरूरत है। अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी।
इससे पहले पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है। पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिये और उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
मेहता ने अदालत को बताया कि पोस्टर केवल ‘प्रतिरोधक’ के तौर पर लगाए गए थे और उसमें केवल यह कहा गया है कि वे लोग हिंसा के दौरान अपने कथित कृत्यों के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिये उत्तरदायी हैं।
लखनऊ होर्डिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी पेश हुए। सिंघवी ने कहा कि दारापुरी 72 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, जो आईजी के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की नीति अपनाई जाएगी तो रोड पर चलते फिरते व्यक्ति को कोई भी लिंच कर देगा।
Supreme Court refuses to stay Allahabad High Court order directing the concerned authorities to remove the posters of those accused persons allegedly involved in vandalism during the anti-CAA protests in Uttar Pradesh. https://t.co/WgjSCCkMBc
— ANI (@ANI) March 12, 2020
बता दें कि, सीएए के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन करने वालों के फोटो सहित पोस्टर, बैनर लगाने को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गलत माना था। कोर्ट ने कहा है कि सरकार लोगों की निजता व जीवन की स्वतंत्रता के मूल अधिकारों पर अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को पोस्टर-बैनर हटाने का निर्देश दिया है और 16 मार्च को अनुपालन आख्या मांगी है।
गौरतलब है कि, नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा के आरोपियों की फोटो वाली होर्डिंग लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर लगाई गई है। इनमे सार्वजनिक और निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान का विवरण है। साथ ही लिखा है कि सभी से नुकसान की भरपाई की जाएगी। आरोपियों से वसूली के लिए शहरभर में लगाए गए पोस्टर और होर्डिंग्स को लेकर सोशल मीडिया और जमीन पर विरोध शुरू हो गया है। राजनीतिक दल, समाजसेवी संस्थाओं के लोग इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं।