कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने गुरुवार (25 जुलाई) को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में प्रस्तावित संशोधन को इस कानून के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी तौर पर ‘‘बदले की भावना’’ का परिणाम करार दिया। सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 पर उच्च सदन में चर्चा में हिस्सा लेते हुए रमेश ने सरकार द्वारा पेश इस संशोधन प्रस्ताव को आरटीआई के भविष्य के लिए खतरनाक बताया।
कांग्रेस नेता ने कहा कि आरटीआई से जुड़े पांच मामलों, जो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री से जुड़े हैं, के कारण सरकार ने बदले की भावना से ये संशोधन प्रस्ताव पेश किए हैं। उन्होंने संशोधन के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इन पांच मामलों के कारण आरटीआई से बदला ले रहे हैं।
पीएम मोदी की शैक्षिक योग्यता का किया जिक्र
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जयराम रमेश ने कहा कि पहला मामला सूचना आयोग द्वारा आरटीआई के तहत प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यता को उजागर करने का आदेश देने से जुड़ा है। यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है और आज अदालत में (गुरुवार) इस पर सुनवाई भी थी।
लाइव लॉ के मुताबिक, जनवरी 2017 में तत्कालीन सूचना आयुक्त एमएस आचार्युलु ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के लिए एक आदेश जारी किया था। इसके तहत 1978 में डीयू ने किन-किन लोगों को बीए की डिग्री जारी की, इस रिकॉर्ड की जांच की जानी थी। आचार्युलु का आदेश यह इसलिए मायने रखता है, क्योंकि वर्ष 1978 में ही प्रधानमंत्री मोदी ने भी डीयू से बीए की डिग्री ली थी। फिलाहल, सीआईसी के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है और फैसले का इंतजार है।
चार करोड़ फर्जी राशन कार्ड का मामला
रमेश ने कहा कि दूसरा मामला चार करोड़ फर्जी राशन कार्ड पकड़े जाने के प्रधानमंत्री के दावे से जुड़ा है जिसकी सच्चाई आरटीआई में ढाई करोड़ फर्जी राशन कार्ड के रूप में सामने आई। कांग्रेस नेता ने कहा कि तीसरा मामला नोटबंदी के कारण विदेशों से कालेधन की वापसी की मात्रा को उजागर करने और दो अन्य मामले, नोटबंदी के फैसले से जुड़े रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के सुझावों से जुड़े हैं।
उन्होंने सत्तापक्ष पर आरोप लगाया कि इन्हीं वजहों से केंद्र और राज्यों में सूचना आयोग की संस्था को ‘दंतहीन’ बनाने के लिये आरटीआई कानून में सरकार संशोधन करना चाहती है। इतना ही नहीं, सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन भत्ते आदि में बदलाव का अधिकार केंद्र सरकार को सौंपने से जुड़े आरटीआई कानून में संशोधन के लिए सरकार भ्रामक दलीलें भी दे रही है।
रमेश ने कहा कि ये संशोधन सहकारी संघवाद के संवैधानिक मकसद को भी आघात पहुंचाएंगे, क्योंकि इससे सूचना आयुक्तों की समूची नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथों में आ जाएगी। कांग्रेस नेता ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग इसलिए बनाया, क्योंकि जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उस समय तत्कालीन योजना आयोग ने गुजरात के शिक्षा एवं स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में प्रतिकूल टिप्पणी की थी।
संसद ने RTI संशोधन विधेयक को दी मंजूरी
बता दें कि संसद ने गुरुवार (25 जुलाई) को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन संबंधी एक विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी। सरकार ने आरटीआई कानून को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी और सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध है। राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। राष्ट्रपति की मुहर के बाद आरटीआई में संशोधन लागू हो जाएगा।
साथ ही सदन ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के लिए लाए गए विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया। उच्च सदन में इस प्रस्ताव पर मतदान के समय भाजपा के सी एम रमेश को कुछ सदस्यों को मतदान की पर्ची देते हुए देखा गया। कांग्रेस सहित विपक्ष के कई सदस्यों ने इसका कड़ा विरोध किया। विपक्ष के कई सदस्य इसका विरोध करते हुए आसन के समक्ष आ गए।
विपक्ष ने किया वॉकआउट
बाद में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस घटना का उल्लेख करते हुए आरोप लगाया कि आज पूरे सदन ने देख लिया कि आपने (सत्तारूढ़ भाजपा) ने चुनाव में 303 सीटें कैसे प्राप्त की थीं? उन्होंने दावा किया कि सरकार संसद को एक सरकारी विभाग की तरह चलाना चाहती है। उन्होंने इसके विरोध में विपक्षी दलों के सदस्यों के साथ वाक आउट की घोषणा की। इसके बाद विपक्ष के अधिकतर सदस्य सदन से बर्हिगमन कर गए।
विधेयक में प्रावधान
इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। साथ ही सूचना आयुक्तों का सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर का दर्जा भी खत्म हो जाएगा। विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने आरटीआई एक्ट को कमजोर करने के लिए संशोधन किया है, जबकि न तो इसमें बदलाव की कोई मांग थी और ना ही जरूरत। (इनपुट- भाषा के साथ)