पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने मंगलवार को कहा कि मोदी सरकार पुराने जख्मों को भरने के बजाय केंद्र जम्मू एवं कश्मीर का एक और जज्बाती बंटवारा थोप रही है। मीडिया में यह खबर आने पर कि केंद्र विधानसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन कराने पर विचार कर रही है, महबूबा ने प्रतिक्रया देते हुए हुए अपने ट्विटर पेज पर कहा, “जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का नक्शा फिर से खींचने की योजना के बारे में सुनकर परेशान हूं।”
(File/PTI)उन्होंने आगे लिखा, “जबरन सरहदबंदी साफ तौर पर सांप्रदायिक नजरिए से सूबे के एक और जज्बाती बंटवारे की कोशिश है।” मीडिया में आई खबरों में कहा गया है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और राज्यपाल सत्यपाल मलिक को संविधान के तहत सभी अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए संभावना है कि वह परिसीमन आयोग का गठन करेंगे, जो विधानसभा सीटों के नए सिरे से परिसीमन की सिफारिश करेगा।
इससे पहले पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को कश्मीर मुद्दे में पाकिस्तान को भी एक पक्ष बताया था और मुद्दे को सुलझाने के लिए पड़ोसी देश को भी शामिल करने की वकालत की थी। मुफ्ती ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में बने गृहमंत्री अमित शाह पर हमला किया था। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर समस्या के त्वरित हल के लिए “बर्बर बल” का सहारा लेने का आरोप लगाया और कहा था कि यह बेतुकी भरी नासमझी होगी।
दरअसल, मंगलवार को खबर आई कि सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग के गठन पर विचार कर रहे हैं। सूबे में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं, लेकिन 24 सीटों को रिक्त रखा गया है। जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक इन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ गया है और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर का अलग से भी संविधान है।
राज्य के संविधान के मुताबिक हर 10 साल के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए। इस तरह से जम्मू-कश्मीर में सीटों का परिसीमन 2005 में किया जाना था, लेकिन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व कानून, 1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करते हुए यह फैसला लिया था।