“जब शरीर के किसी हिस्से को कष्ट होता है तो पूरा शरीर दर्द महसूस करता है” इन अल्फ़ाज़ों के साथ दिल्ली से भी कम जनसंख्या वाले देश न्यूज़ीलैंड की एक महिला प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने साबित कर दिया कि वो दुनियाभर के तमाम ताक़तवर नेताओं से कहीं ऊंचा कद रखती हैं। उनके इन अल्फ़ाज़ों का ऐसा असर हुआ कि हमले के एक सप्ताह बाद हुई जुम्मे की नमाज़ के बाद इमाम ने कहा कि- ”दुनिया भर के नेताओं को आपने जो सीख दी उसका शुक्रिया”।
पीड़ित परिवार के लोगों को गले लगा आंखे बंद कर उनके छलनी दिल के दर्द को महसूस करने की कोशिश वाली तस्वीर सोशल मीडिया से निकली और बुर्ज ख़लीफ़ा पर नुमाया हो गई। जब एक छोटे से देश में सहमी महिलाओं ने हिजाब पहनकर बाहर निकलने पर डर महसूस किया तो बदले में देश की महिलाओं ने #Headscarf कैंपेन शुरू कर दिया और ख़ुद प्रधानमंत्री जुम्मे की नमाज़ में हिजाब पहन कर शामिल हुईं और हमले के बाद लगातार देश के मुसलमानों को यक़ीन दिलाती रहीं कि वो इस देश में महफ़ूज़ हैं।
पर क्या ये बात मैं अपने देश के लिए कह सकती हूं? यहां तो शरीर का एक हिस्सा ही नहीं, बल्कि उसकी आत्मा को ही छलनी किया जा रहा है। कभी दलित तो कभी आदिवासी तो कभी मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। कभी गाय के नाम पर सड़क पर तो कभी ट्रेन में और अब घर में घुसकर मॉब लिंचिंग हो रही है पर नेता तो दूर आस पड़ोस भी ख़ामोश है।
बचपन में जब भी मेरा झगड़ा होता था.. मैं तेज़ी से दौड़ती हुई घर में घुसती और दरवाज़ा बंद कर सोचती थी कि ये दुनिया की सबसे महफ़ूज़ जगह है, यहां कोई मुझे नुक़सान नहीं पहुंच सकता। घर सभी को दुनिया की सबसे महफ़ूज़ जगह लगती है, लेकिन अगर वहीं कोई दिन दहाड़े खिड़की दरवाज़ों को तोड़ते हुए घुसे और आपकी जान ले लेने की कोशिश करे तो हालात कैसे होंगे? जवाब बेहद आसान है इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता।
बहू, बेटियों और बच्चों वाले घर में नशे में धुत्त भीड़ घुसे और बेतहाशा मार पिटाई और गाली गलौज करे तो कैसी दहशत होती है वो गुरुग्राम के उस विडियो में सहमी लड़की की आवाज़ से लगा लीजिएगा। मामला दिल्ली के ही हिस्से NCR के गुरुग्राम का है जहां का एक विडियो सोशल मीडिया पर दहशत फैला रहा है। मैंने भी देखा और सिहर गई, बताया जा रहा है कि मामला क्रिकेट खेलने से शुरू हुआ और पाकिस्तान चले जाने की धमकी के साथ ही घर में घुसकर मॉब लिंचिंग का है।
घटना की असली वजह जो भी रही हो लेकिन जो सबक देने की कोशिश की गई वो बेहद ख़ौफनाक है। आज भले ही उसके शिकार मुसलमान हैं पर इसमें कोई शक नहीं कि कल कोई भी हो सकता है। घटना से कोई डर गया तो कोई ख़ामोश हो गया, और कुछ ने चुनावी चुप्पी साध ली।
हो सकता है मामला पुरानी रंजिश का हो, या कोई और लड़ाई रही हो पर होली के मौक़े पर पूरी तैयारी के साथ माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई, पर इसकी किसे परवाह है? मुसलमान तो होते ही हैं चुनाव में इस्तेमाल करने के लिए, कभी उनका वोट इस्तेमाल कीजिए तो कभी उनकी जान। पांच साल पहले किसी ने डर लगने पर पाकिस्तान चले जाने की हिदायत दी थी और अब उसी हिदायत को अमली जामा पहनाया जा रहा है।
(लेखक टीवी पत्रकार हैं। इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।)