राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले का क्या मध्यस्थता के जरिए समाधान किया जा सकता है, इस सवाल पर आज यानी बुधवार (6 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई की। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के फैसले को सुरक्षित रख लिया। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जा सकता है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संबंधित पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इस पर आदेश बाद में सुनाया जाएगा।
file photoप्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में संविधान पीठ ने पक्षकारों की दलीलें सुनीं। कई हिंदू और मुस्लिम संस्थाएं मामले में पक्षकार हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की ओर से मध्यस्थता का विरोध किया गया। हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि हिंदू इस मामले को भावनात्मक और धार्मिक आधार पर देखते हैं। जबकि मुस्लिम पक्ष ने मध्यस्थता का समर्थन किया। हिंदू पक्ष के वकील ने बाबर द्वारा मंदिर को गिराने का जिक्र किया। इस पर जस्टिस एसए बोब्डे ने कहा कि इतिहास हमने भी पढ़ा है। इतिहास पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हम जो भी कर सकते हैं वो वर्तमान के बारे में कर सकते हैं। हिंदू पक्ष में केवल निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता का समर्थन किया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुझाव दिया कि मध्यस्थता की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाए। तब मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि अगर मध्यस्थता की मीडिया रिपोर्टिंग की जाए तो उस पर अवमानना का मामला चलाया जाए।
शीर्ष अदालत ने गत 26 फरवरी को कहा था कि वह छह मार्च को आदेश देगा कि मामले को अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विभिन्न पक्षों से मध्यस्थता के जरिए इस दशकों पुराने विवाद का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान किए जाने की संभावना तलाशने को कहा था।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि यदि इस विवाद का आपसी सहमति के आधार पर समाधान खोजने की एक प्रतिशत भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए। इस विवाद का मध्यस्थता के जरिये समाधान खोजने का सुझाव पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एस ए बोबडे ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया था।
देखिए, लाइव अपडेट्स:
अयोध्या मामला: मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट में हिंदू सभा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भगवान राम की जमीन है, उन्हें इसका हक नहीं है। इसलिए इसे मध्यस्थता के लिए न भेजा जाए। रामलला विराजमान का भी कहना था कि मध्यस्थता से मामले का हल नहीं निकल सकता। वहीं, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता का पक्ष लिया।
रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया अयोध्या का मतलब राम जन्मभूमि। यह मामला बातचीत से हल नहीं हो सकता। साथ ही कहा कि मस्जिद किसी दूसरे स्थान पर बन सकती है। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप अपना यह पक्ष मध्यस्थता के दौरान रख सकते हैं। इस पर रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि फिर मध्यस्थता का मतलब क्या है?
अयोध्या मामला: हिंदू समूहों के विरोध के बीच मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिखा है। कोर्ट आदेश देगा कि मामला मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नहीं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता के लिए पैनल के नाम सुझाने को कहा है।
सुनवाई के दौरान रामलला के वकील ने कहा कि रामजन्म भूमि की जगह के मामले में हम समझौते के लिए तैयार नही हैं। हिन्दू, मस्जिद कहीं और बनाने के लिए फंड देने को तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए। हिंदू समूहों ने मध्यस्थता के लिए सुझाव का किया विरोध।
जस्टिस बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा, “इस मामले में मध्यस्थता के लिए सिर्फ एक मध्यस्थ की नहीं, बल्कि मध्यस्थों के एक पैनल की जरूरत है।”
Hearing in SC on Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Justice SA Bobde says, "There need not be one mediator but a panel of mediators." https://t.co/jFGH9QBjTI
— ANI (@ANI) March 6, 2019
जस्टिस एसए बोबड़े ने सुनवाई के दौरान कहा, “अतीत में जो हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, किसने आक्रमण किया, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद थी। हमें मौजूदा विवाद के बारे में पता है। हम केवल विवाद को सुलझाने को लेकर चिंतित हैं।”
SC on Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Justice SA Bobde says, “We have no control over what happened in the past, who invaded, who was the king, temple or mosque. We know about the present dispute. We are concerned only about resolving the dispute," pic.twitter.com/23dEMnKrMH
— ANI (@ANI) March 6, 2019
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा, “ये सिर्फ जमीन का नहीं, भावनाओं से जुड़ा मामला है। ये दिल, दिमाग और भावनाओं से जुड़ा मामला है, जो धर्म और विश्वास से जुड़ा है। हम विवाद की गंभीरता को लेकर सचेत हैं।”
Hearing in SC on Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Justice SA Bobde says, “It’s about sentiments, about religion and about faith. We are conscious of the gravity of the dispute." pic.twitter.com/eQwSHQpTkT
— ANI (@ANI) March 6, 2019
न्यायमूर्ति बोबडे ने यह सुझाव उस वक्त दिया था जब इस विवाद के दोनों हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार यूपी सरकार द्वारा अनुवाद कराने के बाद शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में दाखिल दस्तावेजों की सत्यता को लेकर उलझ रहे थे। पीठ ने कहा था, ‘‘ हम इस बारे में (मध्यस्थता) गंभीरता से सोच रहे हैं। आप सभी (पक्षकार) ने यह शब्द प्रयोग किया है कि यह मामला परस्पर विरोधी नहीं है। हम मध्यस्थता के लिये एक अवसर देना चाहते हैं, चाहें इसकी एक प्रतिशत ही संभावना हो।’’
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने कहा था, ‘‘हम आपकी (दोनों पक्षों) की राय जानना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि सारी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए कोई तीसरा पक्ष इस बारे में टिप्पणी करे।’’
इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा था कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिये न्यायालय द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं, वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिंदू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुये कहा था कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है।
पीठ ने पक्षकारों से पूछा था, ‘‘क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिये है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं।’’
पीठ ने मुख्य मामले को आठ सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुये रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वह सभी पक्षकारों को छह सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की अनुदित प्रतियां उपलब्ध कराए। न्यायालय ने कहा था कि वह इस अवधि का इस्तेमाल मध्यस्थता की संभावना तलाशने के लिए करना चाहता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अपील दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था।