आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं, पीएम की सेलेक्शन कमेटी ने जल्दबाजी में लिया फैसला: जस्टिस एके पटनायक

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सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) विवाद के खिलाफ सेंट्रल विजिलेंस कमिशन (सीवीसी) की जांच पर निगरानी रख रहे जस्टिस (सेवानिवृत्त) एके पटनायक ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि बर्खास्त किये गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई भी सबूत नहीं है।

आलोक वर्मा

जस्टिस एके पटनायक ने कहा, ‘आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं है और जो भी सीवीसी की रिपोर्ट कहती है वह फाइनल निर्णय नहीं हो सकता।’ आपको बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल किए जाने के मात्र दो दिन बाद आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ने गरुवार (10 जनवरी) को एक मैराथन बैठक के बाद एक अभूतपूर्व कदम के तहत भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोपों में सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया था।

जस्टिस एके पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘भ्रष्टाचार को लेकर आलोक वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। पूरी जांच (CBI के विशेष निदेशक राकेश) अस्थाना की शिकायत पर की गई थी। मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीवीसी की रिपोर्ट में कोई भी निष्कर्ष मेरा नहीं है।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ही आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी जांच के दौरान जस्टिस एके पटनायक को निगरानी रखने के लिए कहा था।

इस सप्ताह की घटनाओं के बारे में बात करते हुए जस्टिस पटनायक ने कहा, ‘भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई पॉवर कमेटी को फैसला करना चाहिए। मगर फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया गया। हम यहां एक संस्था के साथ काम कर रहे हैं, उन्हें अपना दिमाग लगाना चाहिए था। खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर, क्योंकि CVC जो कहता है वह अंतिम शब्द नहीं हो सकता है।’

सीवीसी के तीन सदस्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जस्टिस एके सीकरी, आलोक वर्मा के पद पर निरंतर बने रहने के खिलाफ थे। वहीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अन्य दो सदस्यों के फैसले के पक्ष में नहीं गए और सीवीसी रिपोर्ट पर अपनी असहमति दर्ज कराई।

बता दें कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) डायरेक्टर पद से हटाए जाने और तबादला किए जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को नाराज आलोक वर्मा ने सरकार को इस्तीफा भेज दिया है। वर्मा का तबादला करते हुए उन्हें डीजी, फायर सर्विस सिविल डिफेंस और होम गार्ड्स बनाया गया था, लेकिन पहले तो उन्होंने डीजी का चार्ज ठुकराते हुए बाद में अपनी सेवा से ही इस्तीफा ही दे दिया। उनके रिटायरमेंट से 21 दिन पहले उन्हें ट्रांसफर कर फायर सेफ्टी विभाग का डीजी बनाया गया था।

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