उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 31 साल पहले हुए नरसंहार में दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (31 अक्टूबर) को सभी अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। 1987 हाशिमपुरा नरसंहार कांड में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 दोषी पीएसी जवानों को दी उम्रकैद की सजा सुनाई है।
Photo Source: Express photo by Praveen Jainइससे पहले ट्रायल कोर्ट ने पीएसी के 16 जवानों को इस केस में संदेह का लाभ देते हुए 2015 में बरी किया था, जिसके बाद पीड़ित पक्ष इस दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। आपको बता दें कि 31 साल पहले यानि की मई 1987 में हुए इस मामले में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
उत्तर प्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर हाई कोर्ट ने छह सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम की कथित भूमिका का पता लगाने के लिए आगे जांच की मांग को लेकर बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
अदालत ने 17 फरवरी 2016 को स्वामी की याचिका को मामले में अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था। निचली अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए मेरठ में 42 लोगों की हत्या के आरोपी 16 प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी कर्मियों को बरी कर दिया था। हालांकि मामले में 17 आरोपी बनाए गए थे लेकिन ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई थी।
इस मामले में जवानों पर आरोप था कि उन्होंने एक गांव से पीड़ितों को कथित तौर पर अगवा कर गंगनहर के पास ले जाकर उनकी हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं हत्या करने के बाद उन जवानों ने सबके शव नहर में फेंक दिए थे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था।
21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने अपने फैसले में सभी 16 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की पहचान और उनके खिलाफ लगे आरोपों को बिना शक साबित नहीं कर पाया। 1987 में हाशिमपुरा कस्बे में हुए नरसंहार में 40 मुसलमान मारे गए थे। 1987 में मेरठ में हुए दंगे के बाद पीएसी के जवान हाशिमपुरा मुहल्ले के 40-50 मुसलमानों को कथित तौर पर अपने साथ ले गए थे।