सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 सितंबर) को अपने ऐतिहासिक फैसले के माध्यम से केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का सभी ने स्वागत किया है, हालांकि केंद्र में एनडीए की सहयोगी और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार में साथ देने वाली शिवसेना ने इसका विरोध किया है।
जी हां, समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक, सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ शिवसेना ने केरल में 1 अक्टूबर को 12 घंटे की हड़ताल बुलाई है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में केरल के सबरीमाला में स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में एक खास आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी शुक्रवार को हटा दी और मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी।
Kerala: Shiv Sena has called for a statewide 12 hours strike on October 1 against Supreme Court's verdict to allow women of all ages to enter Sabarimala Temple. pic.twitter.com/cmDeEtyYSG
— ANI (@ANI) September 29, 2018
आपको बता दें कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश तथा न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर के फैसले से सहमति व्यक्त की जबकि न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा का फैसला बहुमत के विपरीत है।
संविधान पीठ में एक मात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा। पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे। पीठ ने केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये फैसले सुनाए। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भक्ति में भेदभाव नहीं किया जा सकता है और पितृसत्तात्मक धारणा को आस्था में समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा को मानने वाले किसी दूसरे सम्प्रदाय/धर्म के नहीं हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक/जैविक प्रक्रिया के आधार पर महिलाओं को अधिकारों से वंचित करता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि 10-50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को प्रतिबंधित करने की सबरीमला मंदिर की परिपाटी का संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 समर्थन नहीं करते हैं।
अपने फैसले में न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल हिन्दू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति) नियम के प्रावधान 3(बी) को निरस्त करते हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है।