सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 सितंबर) को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सांसदों/विधायकों को वकालत पेशा करने से नहीं रोका जा सकता। न्यायालय ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून अदालतों में उनके प्रैक्टिस करने पर कोई पाबंदी नहीं लगाता है।
file photoमुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता एवं पेशे से वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की संबंधित याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि वकील के सांसद या विधायक बनने पर उनके प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया जा सकता, क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया जनप्रतिनिधियों के वकीलों के तौर पर प्रैक्टिस करने पर रोक नहीं लगाता है।
समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा के मुताबिक, शीर्ष अदालत बीजेपी नेता एवं वकील अश्चिनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायकों और पार्षदों) के कार्यकाल के दौरान अदालत में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अदालत ने इस जनहित याचिका पर नौ जुलाई को आदेश सुरक्षित रख लिया था।
पीठ ने केंद्र के उस जवाब पर गौर किया जिसमें कहा गया था कि सांसद या विधायक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। वह सरकार का पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं होता इसलिए याचिका विचारयोग्य नहीं है। उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नाफड़े ने अदालत को बताया कि जन प्रतिनिधि राजकोष से वेतन पाते हैं और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वेतनभोगी कर्मचारी के अदालत में प्रैक्टिस करने पर रोक लगा रखी है।
इसपर पीठ ने कहा कि रोजगार अपने आप में ही मालिक-नौकर का संबंध बताता है और भारत की सरकार संसद के सदस्य की मालिक नहीं होती। याचिका में कहा गया था कि कोई भी जन सेवक वकील के तौर पर प्रैक्टिस नहीं कर सकता है जबकि कई जन प्रतिनिधि विभिन्न अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे हैं और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
न्यायालय ने कहा कि भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) की नियमावली का नियम-49 केवल वेतनभोगी फुलटाइम कर्मचारी पर लागू होता है। इसके दायरे में सांसद एवं विधायक नहीं आते हैं। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि सांसद और विधायक सार्वजनिक सेवा करते हैं। वे निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं इसिलए उन्हें सरकार का फुलटाइम कर्मचारी नहीं माना जा सकता। फलस्वरूप उन्हें वकालत पेशे से भी नहीं रोका जा सकता।