आपत्तियों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जोसेफ तीसरे नंबर पर ही लिए शपथ, जजों ने केंद्र के फैसले पर जताया था विरोध

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सुप्रीम कोर्ट मे तीन नए जजों ने मंगलवार (7 अगस्त) को शपथ ली। सबसे पहले जस्टिस इंदिरा बनर्जी, फिर जस्टिस विनीत शरण और तीसरे नंबर पर जस्टिस केएम जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट में जज पद की शपथ ली। CJI दीपक मिश्रा ने तीनों जजों को शपथ दिलाई। इन तीन नियुक्तियों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या अब 25 हो गई है, जबकि शीर्ष अदालत में 31 जजों के पद हैं।

(PTI File Photo)

जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट के 68 साल के इतिहास में आठवीं महिला जज हो गई हैं और पहली बार सुप्रीम कोर्ट में एक साथ तीन महिला जज होंगी। इससे पहले दो महिला जज ही कोर्ट में रह चुकी हैं। बता दें कि उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ तमाम विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर पर शपथ ली।

दरअसल इस बात को लेकर विवाद है कि केंद्र सरकार ने पदोन्नति में जस्टिस जोसेफ की वरिष्ठता को कम कर दिया है। केंद्र ने हालांकि अपनी तरफ से कहा कि उसने पूरी तरह से समय की कसौटी पर खरे उतरे हाई कोर्ट की वरिष्ठता सूची के सिद्धांत का पालन किया। यह पिछले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में तीनों न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जारी अधिसूचना के साथ सामने आया जिसमें न्यायमूर्ति के एम जोसफ का नाम तीसरे स्थान पर था।

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जताई थी नाराजगी

जस्टिस केएम जोसेफ का वरिष्ठताक्रम घटाने के केंद्र सरकार के फैसले से सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने नाराजगी जताई थी। सोमवार को इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों ने भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से मुलाकात कर सरकार के इस फैसले पर अपना विरोध दर्ज कराया था।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि दिन के कामकाज की शुरुआत से पहले चाय के दौरान जजों ने CJI से मुलाकात की थी। इनमें जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ भी शामिल थे, जो कोलेजियम के सदस्य हैं। चीफ जस्टिस के बाद सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई वहां मौजूद नहीं थे क्योंकि वह सोमवार को छुट्टी पर थे।

आपको बता दें कि तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति को लेकर केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार को नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें जस्टिस केएम जोसेफ को वरिष्ठताक्रम में तीसरे नंबर पर रखा गया था। जस्टिस जोसेफ की शीर्ष अदालत में पदोन्नति को लेकर पिछले कुछ समय से कोलेजियम और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई थी।

दरअसल, उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस जोसेफ ने उस पीठ का नेतृत्व किया था जिसने 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को निरस्त कर दिया था। उत्तराखंड में उस समय कांग्रेस की सरकार थी। सरकार के फैसले को इससे जोड़कर देखा जा रहा था।

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