“2 घंटे की फिल्म के लिए, परामर्श हो सकता है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के हक के बारें कोई बातचीत नहीं की जाती है”

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शनिवार को सेंसर बोर्ड ने संजय लीला भंसाली की चर्चित फिल्म को हरी झंडी दिखा दी। सेंसर बोर्ड ने फिल्म को यू/ए प्रमाणपत्र के साथ अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। फिल्म को लेकर देशभर में व्यापत हिंसा फैलाई गई थी जिसे अब सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया है। इस फैसले से लोकसभा के सांसद और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का गुस्से से पारा चढ़ गया।

असदुद्दीन ओवैसी ने भी सेंसर बोर्ड के फैसले पर आपत्ति जताते हुए ट्वीट किया और लिखा कि 2 घंटे की एक फिल्म के लिए संगठनों के साथ बातचीत की जाती है लेकिन जब मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण और न्याय की बात आती है तो कोई बातचीत नहीं होती हैं, बल्कि क्रूर बहुमत से तैयार किया जाता है, दोषपूर्ण और बिल जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

ओवैसी ने इस मसले पर सदन में सुझाव भी दिए थे, जिसे खारिज करते हुए विधेयक को पारित कर दिया गया था। अब राज्यसभा में इस पर बहस होनी है। जबकि ‘जनता का रिपोर्टर’ ने इस विषय पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट में बताया कि तीन तलाक़ पर मोदी सरकार बेनक़ाब हो गई हैं। लोकसभा में बिल पारित कराने के पीछे मोदी सरकार का असली मकसद कुछ और था।

विवाहित मुस्लिम महिलाओं को विवादित तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की सामाजिक कुरीति से निजात दिलाने के लिए लोकसभा ने गुरुवार (28 दिसंबर) को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक- 2017 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। सदन ने विपक्षी सदस्यों की ओर से लाये गये कुछ संशोधनों को मत विभाजन से तथा कुछ को ध्वनिमत से खारिज कर दिया गया, क्योंकि लोकसभा में सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी बहुमत में है।

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