दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने बुनियादी सरकारी सेवाओं जैसे जन्म प्रमाण पत्र, लाइसेंस, पेंशन, कल्याण स्कीम, राशन कार्ड आदि की डिलिवरी घर-घर जाकर करने की दिल्ली सरकार की प्रस्तावित योजना को खारिज कर दिया है। इसके तहत दिल्ली सरकार दिल्ली वालों को बुनियादी सरकारी सुविधाएं घर पर ही मुहैया कराना चाह रही थी।
इस बात की जानकारी दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दी। मनीष सिसोदिया ने इसे दिल्ली वालों के लिए झटका करार दिया है। सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा है, “उपराज्यपाल महोदय ने दिल्ली सरकार द्वारा 40 सेवाओं को घर बैठे उपलब्ध कराने की योजना को ठुकरा दिया है।
LG rejects proposal of doorstep delivery of 40 govt services like caste-birth-address certificates, licences, social welfare schemes, pensions, registrations..etc
LG sends it back for reconsideration. LG says digitalization of services enough. No need for doorstep delivery. 1/N
— Manish Sisodia (@msisodia) December 26, 2017
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा है, “इनमें से अधिकांश सेवाएं पहले से ही डिजीटल हैं, बावजूद इसके सरकारी दफ्तरों में लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगी रहती हैं। डिजिटाइजेशन के बावजूद अधिकांश लोग कागजात लेकर सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटते रहते हैं। दरवाजे पर सरकार कार्यक्रम के तहत अधिकारी लोगों के एक फोन कॉल पर उनके घर पर जाकर कागजात लेकर उसका सत्यापन और फिर उसे अपलोड करने की सेवा दे सकते थे।”
Most of these services r already digital. Yet, long queues in offices. Despite digitalization, most people still hv to run around govt offices with docs etc. Under doorstep delivery scheme, a govt rep wud visit ur house on a ph call to collect, certify n upload ur docs.2/N
— Manish Sisodia (@msisodia) December 26, 2017
LG has taken decision without knowing field reality. Announcement of doorstep delivery scheme was welcomed by all sections of society.
Huge setback in Del govt’s efforts to provide good and corruption free governance.. 3/N
— Manish Sisodia (@msisodia) December 26, 2017
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच उपजे इस विवाद ने एक बार फिर से दिल्ली के लोगों तक सरकार की सुविधाओं के बीच बाधा माना जा रहा है। हालांकि कहा जा रहा है कि सरकार कोर्ट का रुख अपना चुकी है और यह तर्क पेश किया है कि सरकार के प्रस्तावों और योजनाओं पर एलजी बैठे हुए हैं।