नीतीश-मोदी सरकार के गले की हड्डी बना 1500 करोड़ का ‘सृजन घोटाला’, जानिए क्या है पूरा मामला?

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भागलपुर भागलपुर जिले में उजागर करीब 1500 करोड़ रुपये के ‘सृजन घोटाला’ मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का निर्देश दिया है। नीतीश ने गुरुवार(17 अगस्त) को ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी। बता दें कि महागठबंधन से अलग होकर और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद सीएम नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को इस घोटाले से दो-चार होना पड़ रहा है।जबकि इस मामले में राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका भी सामने आई है। मुख्यमंत्री ने इस सिलसिले में दर्ज काण्डों समेत पूरे मामले की जांच CBI को सौंपने का निर्देश दिया। बता दें कि आरजेडी मुखिया लालू प्रसाद यादव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की थी।

दरअसल, यह सृजन घोटाला धीरे-धीरे एक बड़े घोटाले का रूप लेता जा रहा है। यह घोटाला सामने आने के बाद अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को लगातार घेर रहे हैं। सृजन घोटाले की जांच में अब तक करीब 1500 करोड़ रुपए के घोटाले की बात सामने आई हैं, जबकि आरजेडी का दावा है कि घोटाला 2500 करोड़ का है।

क्या है सृजन घोटाला?

दरअसल, बिहार के भागलपुर जिले में एक ‘सृजन’ नाम का गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) है। इस एनजीओ को 1996 में महिलाओं को काम देने के मकसद से शुरू किया गया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तीन अगस्त को 10 करोड़ के एक सरकारी चेक के बाउंस होने के बाद यह घोटाला सामने आया। इस मामले में बाद में छानबीन में पता चला चला कि जिलाधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर से बैंक से सरकारी पैसा निकाल कर एनजीओ के खाते में डाला गया।

जब मामले की जांच शुरू हुई तो अधिकारियों को पता चला कि यह दो से चार करोड़ का नहीं, बल्कि सैकड़ों करोड़ों रुपये का यह घोटाला है। भागलपुर जिले के तीन सरकारी बैंक खातों में सरकार फंड भेजती थी, जिसे कुछ प्रशासनिक अधिकारी बैंक कर्मचारी की मिलीभगत से महिला सहयोग समिति लिमिटेड के खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था। सृजन उस पैसे को रियल इस्टेट और ब्याज पर लगाने लगा।

किसका है यह सृजन NGO?

वन इंडिया डॉट कॉम के मुताबिक, संस्था की संचालिका मनोरमा देवी एक विधवा महिला थी। जिसके पति अवधेश कुमार रांची में वैज्ञानिक थे और 1991 मे उनकी मौत हो गई। जिसके बाद मनोरमा देवी अपने बच्चे को लेकर भागलपुर चली आईं और वही एक किराए के मकान में रह कर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करना शुरू किया। मनोरमा पहले ठेले पर कपड़ा बेचने का काम शुरू किया फिर सिलाई का और धीरे-धीरे यह काम इतना बढ़ने लगा कि उसमे और भी कई महिलाएं शामिल हो गई।

जिसके बाद 1993-94 मे मनोरमा देवी ने ‘सृजन’ नाम की NGO की स्थापना की। धीरे-धीरे मनोरमा देवी की साख इतना मजबूत हो गया कि तमाम बड़े अधिकारी से लेकर राजनेता तक उनके बुलावे पर पहुंच जाते थे। मनोरमा देवी अपने समूह में लगभग 600 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर उन्हें रोजगार से जोड़ा था। मनोरमा ने सहयोग समिति चलाने के लिए सरकार के सहयोह से भागलपुर में एक मकान 35 साल तक के लिए किराए पर लिया। मकान किराए पर लेने के बाद ‘सृजन’ NGO के खाते में सरकार के खजाने से महिलाओं की सहायता के लिए रुपए आने शुरू हो गए।

जिसके बाद सरकारी अधिकारियों और बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से पैसे की हेराफेरी शुरू हो गया।सृजन एनजीओ के पास को-ऑपरेटिव बैंक का लाइसेन्स भी मौजूद है, 2007-8 में यह बैंक खुला। असली खेल इसी बैंक शुरू हुआ और भागलपुर ट्रेजरी के पैसे इसके खाते में आने लगे। रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का रकम NGO के अकाउंट में डाल दिया गया और इसके ब्याज से अधिकारी मालामाल होकर चल दिए।

देखते-देखते यह कार्यक्रम कई सालों तक चला और सृजन महिला विकास समिति के छह अकाउंट में कई करोड़ों रुपए डालना शुरु हो गया। इस हेराफेरी के खेल में मनोरमा देवी सहित कई अधिकारियों के साथ-साथ सफेदपोश लोग भी शामिल थे। मनोरमा देवी का इसी साल फरवरी में मौत हो चुकी है। एनजीओ की मौजूदा सचिव मनोरमा की बहु प्रिया कुमार हैं जो फरार हैं।

घेरे में सुशील मोदी

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह घोटाला 2008 से हो रहा है। तब बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार थी। उस वक्त वित्त मंत्रालय सुशील मोदी के पास हुआ करता था। उसी साल ऑडिटर ने यह गड़बड़ी पकड़ ली थी। आपत्ति की थी कि सरकार का पैसा कोपरेटिव बैंक में कैसे जमा हो रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इन दौरान सुशील कुमार मोदी वित्त मंत्री रहे तो ऐसे में उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है।

NDTV के मुताबिक, एसडीएम विपिन कुमार ने सभी प्रखंड के अधिकारियों को लिखा कि पैसा सृजन के खाते में जमा नहीं करें। लेकिन सबकुछ पहले जैसा होता रहा। जिसके बाद सवाल यही उठा कि आखिर कोई जिलाधिकारी किसके कहने पर सरकारी विभागों का पैसा सृजन कोपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर कर रहे थे। एक नहीं एक के बाद कई जिलाधिकारियों ने ऐसा होने दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, 25 जुलाई 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार सरकार से कहा था कि इस कोपरेटिव बैंक की गतिविधियों की जांच करें। 2013 में भागलपुर के तत्कालीन डीएम प्रेम सिंह मीणा ने सृजन के बैंकिंग प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए जांच टीम बना दी थी। मगर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जबकि, मीडिया रिपोर्ट के मुतबिक सृजन ने सरकार के फंड से नौ सालों में करीब 5000 करोड़ से अधिक की संपत्ति बनाई।

तेजस्वी यादव ने BJP-JDU नेताओं का बताया हाथ

पूर्व उपमुख्यमंत्री विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि सृजन घोटाला बिहार का सबसे बड़ा घोटाला है। उन्होंने कहा कि इस घोटाले के पीछे सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड(जेडीयू) के नेताओं का हाथ है। उन्होंने कहा कि सरकार व्यापमं और पनामा पेपर कांड की तरह सृजन महाघोटाले को दबाना चाहती है।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि चहेते अफसरों को जांच में लगाकर सरकार मामले का रफा-दफा करने में जुटी है। गुरुवार को तेजस्वी यादव ने कहा कि जनादेश अपमान यात्र की जानकारी सरकार और प्रशासन को 14 अगस्त को दे दी गई थी। स्कूल प्रबंधन कमेटी ने सभा करने की अनुमति भी दे दी थी। सबौर के गेस्ट हाउस में रात्रि विश्रम की अनुमति मिली थी, लेकिन 16 अगस्त की रात शहर में प्रवेश करने पर और सबौर जाने की इजाजत नहीं दी।

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