पढ़िए, विनोद खन्ना का फिल्म से लेकर राजनीति तक का सफर

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बॉलिवुड के मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना का 70 साल की उम्र में गुरुवार(27 अप्रैल) को निधन हो गया है। विनोद खन्ना काफी दिनों से बीमार थे और वह कैंसर से पीड़ित थे। विनोद खन्ना ने मुंबई के रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली। बता दें विनोद खन्ना फिल्मों के अलावा राजनीति में भी सक्रिय थे। वह पंजाब के गुरदासपुर से भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) के सांसद थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, खन्ना को बीते 31 मार्च को मुंबई स्थित सर एच एन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, अस्पताल की ओर से यही कहा गया था कि खन्ना के शरीर में पानी की कमी हो गई है। विनोद खन्ना की निधन की खबर सुनते ही उनके प्रशंसकों में निराशा की लहर दौड़ गई है।

कुछ दिन पहले उनकी एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसमें वे बेहद कमजोर नजर आ रहे थे। विनोद खन्ना ने दो शादियां कीं, उनकी पहली पत्नी गीतांजलि थीं, जिनसे 1985 में तलाक हो गया। जिसके बाद उन्होंने बाद में कविता से दूसरी शादी की। उनके तीन बेटे अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना और साक्षी खन्ना हैं। उनकी एक बेटी है, जिसका नाम श्रद्धा खन्ना है।

विनोद खन्ना का जन्म एक व्यापारिक परिवार में 6 अक्टूबर,1946 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। उनका परिवार अगले साल 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई में आकर बस गया था। उनके माता-पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था।

विनोद खन्ना अपने फिल्मी सफर की शुरूआत 1968 मे आई फिल्म ‘मन का मीत’ से की थी, जिसमें उन्होने एक खलनायक की भूमिका निभाई थी। कई फिल्मों में उल्लेखनीय सहायक और खलनायक के किरदार निभाने के बाद 1971 में उनकी पहली एकल हीरो वाली फिल्म ‘हम तुम और वो’ आई।

इसके साथ ही खन्ना ने ‘मेरे अपने’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘इम्तिहान’, ‘इनकार’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘लहू के दो रंग’, ‘कुर्बानी’, ‘दयावान’ और ‘जुर्म’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय के लिए जाना जाता है। वह आखिरी बार 2015 में शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले’ में नजर आए थे।

1997 में विनोद खन्ना भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) में शामिल हो गए और गुरदासपुर सीट से चार बार लोकसभा सांसद रहे। उन्होंने वर्ष 1998, 1999, 2004 और 2014 का लोकसभा चुनाव जीता। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 2002 में वे केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन के मंत्री भी रहे। जिसके बाद मात्र 6 महीने बाद ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया।

 

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