सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मोदी सरकार के शीर्ष कानूनी वकीलों को याद दिलाया कि 8 नवंबर को अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुराने नोट बदलने के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय की थी। कोर्ट ने केंद्र से इस मामले में दो हफ्ते में जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होगी।
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार से सवाल किया कि उन लोगों को नोट जमा करने के लिए कोई विंडो क्यों नहीं दी गई, जो 31 दिसंबर की डेडलाइन तक पैसे जमा नहीं कर सके।
8 नवंबर को जारी नोटिफिकेशन में भी कहा गया कि जो लोग 30 दिसंबर तक जमा नहीं करा पाएंगे उन्हें उचित कारण बताकर एक तारीख तक नोट जमा कर पाएंगे। लेकिन 30 दिसंबर को सरकार अध्यादेश लेकर आई जिसमें सिर्फ विदेश में मौजूद लोगों के लिए 31 मार्च तक नोट जमा कराने की छूट दी गई।
सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई हो रही है, जिसमें सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया गया था। याचिका में आरोप लगाया गया कि नोटबंदी का एलान करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने 31 मार्च तक 500-1000 रुपए के नोट जमा करने का मौका देने का वादा किया था। लेकिन बाद में ये सीमा 30 दिसंबर 2016 तक ही कर दी गई जबकि 31 मार्च 2017 तक ये छूट NRI को ही दी गई है।