फिल्म का नाम: ट्यूबलाइट
डायरेक्टर: कबीर खान
स्टार कास्ट: सलमान खान, सोहेल खान, जूजू, मतीन रे तंगू, ओम पुरी, शाहरुख खान, मोहम्मद जीशान अयूब
अवधि: 2 घंटा 16 मिनट
सर्टिफिकेट: U
ईद के मौके पर फिल्म लाकर करोड़ो की कमाई करने के लिए सलमान खान मशहूर है। आज दुनियाभर में कुल 5,500 सिनेमाघरों में ‘ट्यूबलाइट’ प्रर्दशित की गई है। ‘ट्यूबलाइट’ की कहानी को कबीर खान ने दो भाईयों के आपसी प्यार के इर्द-गिर्द बुना है जो 1962 के भारत चीन युद्ध के घटनाक्रम को देखते हुए बनाई गई है। फिल्म की कहानी बताती है कि जब 1962 के भारत चीन युद्ध चल रहा था तो नौजवानों को सेना में भर्ती किया जा रहा है। तब चीन बॉर्डर पर बसे एक गांव में रहने वाले दो भाइयों में से एक सेना में भर्ती हो जाता है। दूसरा भाई उसके लोटने की राह देखता है। क्या वह अपने भाई से मिल पाता है, यहीं इस फिल्म में दिखाया गया है।
‘ट्यूबलाइट’ हॉलिवुड फिल्म ‘लिटल बॉय’ से इंस्पायर्ड है जिसे अलेजांद्रो मॉन्टवर्द ने निर्देशित किया है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि जब भी बाहर की फिल्मों की कहानी को उठाया जाता है तो उसमें एक अजीब तरह का भोंडापन उसमें परोस दिया जाता है। रोहित शेट्टी, डेविड धवन, प्रियदर्शन, अनीज बज्मी जैसे निर्देशकों का नाम इस लिस्ट में आता है, जिसमें अब कबीर खान भी जुड़ गया है।
सलमान खान फिल्म में लक्ष्मण नाम से एक कमअक्ल व्यक्ति का किरदार निभा रहे है। कहानी बहुत ही खूबसूरत उत्तर-पूर्वी भारत के शहर जगतपुर से शुरू होती है। गांव के लोग लक्ष्मण की मासूमियत भरी बेवकूफियों पर हंसते हुए नजर आते हैं। सलमान खान के चेहरे पर पूरी फिल्म के दौरान एक सा ही भाव दिखाई देता है। वह हमेशा की तरह एक सी अदायगी करते हुए नज़र आते है और पूर्व की तरह ही इस बार भी अपने भाई सोहेल खान को स्टार बनाने की भरपूर कोशिश करते हुए नजर आते है।
फिल्म के बारें में नवभारत टाइम्स लिखता है, फिल्म के वॉर सीक्वेंस जबरदस्ती घुसाए हुए से लगते हैं और उन्हें देखकर कोई भावुकता नहीं जागती। ऐसा इसलिए क्योंकि न तो फिल्ममेकर ने इसमें भावुक लेखन को लाने की ज़हमत उठाई है और न ही ऐसे कोई मोंटाज रखे हैं जो झकझोर कर रख दें।
फिल्म दर्शक को कन्विंस करने में नाकामयाब रहती है। बल्कि, सबकुछ इतना ज्यादा अच्छा-अच्छा भर दिया गया है कि आपको लगेगा कि आप सलमान की फिल्म देखने नहीं, बल्कि सत्संग में आए हैं।
एनडीटीवी लिखता है, फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीन्प्ले ढीला है, जिसकी वजह से आप ना तो फिल्म से और ना ही किरदारों से जुड़ पाते हैं। आप फिल्म के सीन्स देखते तो हैं, लेकिन इसके साथ उसके भावनात्मक सफर पर नहीं निकल पाते। फिल्म के कई पहलू आपको बेमाने लगते हैं और आपको समय बर्बाद करते से लगते हैं। फिल्म देख कर आपको लगता है की निर्देशक-लेखक कबीर खान को अपनी कहानी पर ही यकीन नहीं था। ‘ट्यूबलाइट’ की कहानी जिस तरह की है, उसमें ड्रामे की जरूरत थी लेकिन फिल्म के अहम दृश्यों में ड्रामा ही गायब है।
आजतक लिखता है, फिल्म का स्क्रीनप्ले भी काफी बिखरा-बिखरा सा नजर आता है जिसे भली भांति अच्छे तरीके से पेश किया जाता तो कहानी किसी और लेवल की होती। फिल्म की सोच अच्छी है लेकिन उसे पूरी तरीके से दर्शा पाने में मेकर असक्षम दिखते हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स काफी प्रेडिक्टेबल सा है जिसे और दिलचस्प किया जाता तो देखने का अलग मजा होता।
फिल्मी बीट लिखता है, स्क्रीनप्ले काफी बिखरी सी है, जो कि आपको किरदार से जुड़ने का मौका ही नहीं देती। फिल्म की कहानी इतनी कमज़ोर है कि संगीत भी प्रभावी नहीं लगता।
फ्यूज 'ट्यूबलाइट' !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
— rajendra kandpal (@rajendrakandpal) June 23, 2017