साबरमती एक्सप्रेस ब्लास्ट: 16 साल जेल में बिताने के बाद पूर्व AMU स्कॉलर बरी, कोर्ट ने निर्दोष करार दिया

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16 साल से जेल में बंद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का पूर्व स्कॉलर और संदिग्ध हिजबुल मुजाहिद्दीन ऑपरेटर गुलजार अहमद वानी को बाराबंकी की एक अदालत ने शनिवार(20 मई) को 2000 में साबरमती एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट का षडयंत्र रचने के आरोप से बरी कर दिया है। इस धमाके में नौ लोग मारे गए थे और कई अन्य जख्मी हो गए थे।

फाइल फोटो: PTI

वानी के वकील एम एस खान ने बताया कि बाराबंकी के एडिशनल सेशन जज एम ए खान ने हिज्बुल मुजाहिदीन के संदिग्ध सदस्य 43 साल के वानी और सह-आरोपी मोबिन को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। साल 2001 में कथित तौर पर विस्फोटकों और आपत्तिजनक सामग्रियों के साथ दिल्ली पुलिस की ओर से गिरफ्तार किए गए वानी श्रीनगर के पीपरकारी इलाके के रहने वाले हैं और लखनऊ की एक जेल में बंद हैं।

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कानपुर के पास यह धमाका उस वक्त हुआ था, जब साबरमती एक्सप्रेस मुजफ्फरपुर से अहमदाबाद जा रही थी। इस घटना में नौ लोग मारे गए थे और कई अन्य जख्मी हो गए थे। वकील ने बताया कि एडिशनल सेशन जज एम ए खान की कोर्ट ने दोनों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर पाया।

उन्होंने कहा कि हत्या, हत्या की कोशिश, आपराधिक साजिश, युद्ध छेड़ने, हथियार इकट्ठा करने और देश के खिलाफ अपराध के लिए साजिश रचने के कथित अपराधों के लिए आईपीसी के तहत बाराबंकी के जीआरपी पुलिस थाने में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक मामला दर्ज किया था।

भारतीय रेलवे कानून और विस्फोटक पदार्थ कानून के तहत भी उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। वकील ने बताया कि वानी के खिलाफ 10 अन्य मामले भी दर्ज किए गए थे। 11 मामलों में से 10 में वानी को आरोपमुक्त या बरी किया जा चुका है। हालांकि, दिल्ली में एक धमाके को अंजाम देने के लिए विस्फोटक रखने के जुर्म में वानी को दोषी करार दिया गया था और 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी।बहरहाल, दिल्ली हाई कोर्ट ने वानी की सजा पर रोक लगा रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में वानी को जमानत दे दी थी और कहा था कि वह 16 साल से ज्यादा समय तक सलाखों के पीछे रहे हैं और 11 में से नौ मामलों में बरी किए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोअर कोर्ट की ओर से तय की गई शर्तों पर वानी को एक नवंबर से जमानत पर रिहा किया जाएगा, भले ही सुनवाई पूरी हुई हो या ना हुई हो।

30 जुलाई 2001 को जब वानी को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त वह एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहे थे। दिल्ली में विस्फोटकों की कथित बरामदगी के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 26 अगस्त को वानी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि ऐसे लोगों की रिहाई से समाज के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

जिसके बाद वानी ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह छह महीने में मामले के गवाहों से तेजी से जिरह करे। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 14 अगस्त 2000 को साबरमती एक्सप्रेस में धमाके को अंजाम देने के लिए मई 2000 में एएमयू के हबीब हॉल में साजिश रची थी। उनके खिलाफ जुलाई 2001 में आरोप तय किए गए थे। वहीं, बचाव पक्ष के वकील खान ने दलील दी थी कि ठोस साक्ष्यों के अभाव के कारण आरोपी बरी होने का हकदार है।

 

 

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