ड्यूटी के दौरान दाढ़ी रखने पर अड़े रहने के मामले में निलंबित हुए महाराष्ट्र रिजर्व पुलिस फोर्स के कर्मचारी जहीरुद्दीन शमसुद्दीन बेदादे ने गुरुवार(13 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट का वह ऑफर ठुकरा दिया, जिसमें उन्हें सहानुभूति के आधार पर फिर से नौकरी जॉइन करने को कहा गया था। पुलिसकर्मी के वकील के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का ऑफर इस्लाम के कानूनों के खिलाफ है।
मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बेदादे के वकील से कहा कि हम आप के लिए बुरा महसूस कर रहे हैं। आप फिर से नौकरी जॉइन क्यों नहीं कर लेते? अगर आप चाहें तो हम आपको ज्वाइन कराने में कुछ मदद कर सकते हैं, अगर आप यह मानें की कुछ धार्मिक अवसरों के अलावा आप दाढ़ी नहीं रखेंगे, तो यह आपकी इच्छा है।
इस पर बेदादे के वकील मोहम्मद इरशाद हनीफ ने कहा कि इस्लाम में अस्थाई दाढ़ी रखने की अवधारणा नहीं है। वकील ने इस मामले में जल्द सुनवाई की मांग थी। हालांकि, वकील के साफ जवाब नहीं देने पर चीफ जस्टिस ने जल्द सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकरा दिया।
दरअसल, जहीरुद्दीन ने जब महाराष्ट्र रिजर्व पुलिस फोर्स में 16 जनवरी 2008 को बतौर कॉन्स्टेबल ज्वाइन किया था, उस वक्त दाढ़ी रखने की इजाजत दी गई थी। हालांकि, बेदादे को पुलिस फोर्स में आने के बाद छंटी हुई और साफ दाढ़ी रखने की शर्त पर इजाजत दी गई थी, लेकिन बाद में कमांडेंट ने इस अनुमति को वापस लेकर जहीरुद्दीन के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरु कर दी।
जिसके बाद बेदादे ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर 2012 को जहीरुद्दीन के खिलाफ फैसला दिया था। अदालत ने कहा था कि फोर्स एक धर्मनिरपेक्ष एजेंसी है और यहां अनुशासन का पालन जरूरी है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि दाढ़ी रखना मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि यह इस्लाम के बुनियादी उसूलों में शामिल नहीं है।
इसके बाद बेदादे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2013 में बेदादे के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से ही यह केस सुनवाई के लिए लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें इस नियम को मान लेना चाहिए और नौकरी ज्वाइन कर लेनी चाहिए, लेकिन बेदादे ने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया है।