गुजरात मॉडल की खुली पोल, राज्य में बेरोजगार हैं 80 फीसदी इंजीनियर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में युवा नौकरी के लिए तरस रहे हैं। जी हां, गुजरात में नौकरियों को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं वह चौंकाने वाले हैं। देश भर में गुजरात मॉडल को लागू करने का दम भरने वाले पीएम मोदी के गुजरात में करीब 80 प्रतिशत इंजीनियर बेरोजगार हैं। राज्य में केवल 20 फीसदी छात्रों को ही नौकरी मिल पाती है।

फोटो: साभार

इतना ही नहीं टाइम्म ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सिविल इंजीनियरिंग जैसी कुछ ब्रांच में तो मात्र पांच फीसदी छात्रों का ही प्लेसमेंट हो पाता है। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में कंप्यूटर साइंस में पास हुए 11,190 छात्रों में से सिर्फ 3,407 छात्रों को नौकरी मिली।

रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल 17,028 छात्रों ने मैकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर पास हुए हैं, लेकिन सिर्फ 4, 524 छात्रों को नौकरी मिली है। वहीं, एडमिशन कमिटी फॉर प्रोफेशनल कोर्सेज (एसीपीसी) ने 2016 में जो दाखिला प्रक्रिया शुरू की थी, उसमें 71 हजार सीटों में 27 हजार खाली रह गई थीं।

विशेषज्ञों का कहना है कि मांग से ज्यादा इंजीनियरों की सप्लाई, शिक्षा की गुणवत्ता, इंडस्ट्री की जरूरत और सिलेबस में गैप कई ऐसे कारण हैं, जिनके वजह से कैंपस प्लेसमेंट में छात्रों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। एसएएल के डायरेक्टर (कैंपस) रुपेश वसानी ने अखबार को बताया कि जो छात्र एमबीए और एमसीए कर रहे हैं उन्हें छह हजार से आठ हजार के बीच सैलरी दी जाती है।

उन्होंने कहा कि छात्रों को इतनी कम सैलरी में संतुष्टि नहीं मिलती है, इंजीनियरों की इच्छाएं काफी ज्यादा होती हैं। इतना ही नहीं कंपनियां अगर उन्हें 10 से 15 हजार ऑफर करती हैं तो छात्र इसे भी ठुकरा रहे हैं।

असोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंस कॉलेज ऑफ गुजरात के अध्यक्ष जनक खंडवाला का कहना है कि उद्योग जगत की जरूरतों के मुताबिक ही पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। इसके अलावा छात्रों को इंटर्नशिप भी करनी चाहिए, ताकि उन्हें इंडस्ट्री में काम कैसे होता है, इसकी जानकारी मिल सके।

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