विजयादशमी के अवसर पर नागपुर में अपने वार्षिक संबोधन के दौरान राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गुरुवार (18 अक्टूबर) को आलोचना की। भागवत ने कहा कि फैसला दोषपूर्ण है क्योंकि इसमें सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया और इसलिए इसे सहजता से स्वीकार नहीं किया जाएगा।
(HT FILE PHOTO)सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरफ इशारा करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 10 से 50 साल तक की लड़कियों एवं महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा बहुत लंबे समय से थी और इसका पालन किया जा रहा था। भागवत ने कहा, ‘‘(सुप्रीम कोर्ट में) याचिकाएं दाखिल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं। महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है। उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया।’’
समाचार एजेंसी IANS की रिपोर्ट के मुताबिक, भागवत ने रेशिमबाग में विजयादशमी के मौके पर राष्ट्रीय स्वंयसेवकों से कहा, “यह फैसला सभी पहलुओं पर बिना विचार किए लिया गया, इसे न तो वास्तविक व्यवहार में अपनाया जा सकता है और न ही यह बदलते समय व स्थिति में नया सामाजिक क्रम बनाने में मदद करेगा।” भागवत ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के 28 सितंबर के फैसले की वजह से सबरीमाला में बुधवार को जो स्थिति दिखाई दी, उसका कारण सिर्फ यह है कि समाज ने उस परंपरा को स्वीकार किया था और लगातार कई सालों से पालन होती आ रही परंपरा पर विचार नहीं किया गया।
उन्होंने कहा, “लैंगिक समानता का विचार अच्छा है। हालांकि, इस परंपरा का पालन कर रहे अनुयायियों से चर्चा की जानी चाहिए थी। करोड़ों भक्तों के विश्वास पर विचार नहीं किया गया।” आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में सबरीमला मंदिर में महिलाओं के आने पर लगी रोक को समाप्त कर दिया था। कोर्ट ने हर उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटाए जाने के बाद केरल के मशहूर सबरीमाला मंदिर के कपाट बुधवार (17 अक्टूबर) शाम को मासिक पूजा के लिए खोले गए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 10 से 50 साल उम्र की कोई भी महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकी और उन्हें रास्ते से ही लौटना पड़ा।
राम मंदिर बनाने के लिए मोदी सरकार से की कानून लाने की मांग
अपने संबोधन के दौरान प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर राम मंदिर बनाने का आह्वान किया। भागवत ने मोदी सरकार से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग की है। समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक भागवत ने सरकार से अपील की है कि वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण ‘स्वगौरव’ की दृष्टि से आवश्यक है और मंदिर बनने से देश में सद्भावना एवं एकात्मता का वातावरण बनेगा।
भागवत ने कहा, ‘‘राम जन्मभूमि स्थल का आवंटन होना बाकी है, जबकि साक्ष्यों से पुष्टि हो चुकी है कि उस जगह पर एक मंदिर था। राजनीतिक दखल नहीं होता तो मंदिर बहुत पहले बन गया होता। हम चाहते हैं कि सरकार कानून के जरिए (राम मंदिर) निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। श्रीराम मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है। मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा।’’
उन्होंने कहा कि कुछ तत्व नई-नई चीजें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रहे हैं और फैसले में रोड़े अटका रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिना वजह समाज के धैर्य की परीक्षा लेना किसी के हित में नहीं है। आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं। राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है।’’