सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की ओर से भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर उठाए गए सवाल के बाद अब मामले को सुलझाने की कोशिश शुरू हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय के चार शीर्ष न्यायाधीशों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जाने से उपजे संकट के बीच बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सभी न्यायाधीशों के साथ मौजूदा संकट पर चर्चा के लिए सात सदस्यीय टीम का गठन किया है।इस बीच जजों की ओर से चीफ जस्टिस पर केसों के आवंटन में पक्षपात का आरोप लगाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सनसनीखेज आरोप लगाया है। ‘बार एंड बेंच’ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक दवे ने सुप्रीम कोर्ट के जज पर सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि सीबीआई के विशेष जज रहे जस्टिस बीएच लोया की रहस्यमय मौत के मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस अरुण मिश्रा के बीजेपी के शीर्ष नेताओं से करीबी संबंध हैं।
दवे ने कहा है कि, ‘हर कोई जानता है कि जस्टिस अरुण मिश्रा के बीजेपी और शीर्ष राजनेताओं के साथ करीबी संबंध हैं।’ यही नहीं उन्होंने कहा कि जस्टिस अरुण मिश्रा को लोया केस की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। वहीं, जस्टिस लोया केस की संदिग्ध मौत की जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक तहसीन पूनावाला ने भी टाइम्स नाउ को बताया कि दवे ने उन पर दबाव डाला था कि वे अरुण मिश्रा की बेंच से अपना केस वापस ले लें।
I read what Dave sir said about me in @barandbench . Dave sir on the morning of 12th when my case was to be heard wanted me to COME to the CJI with him and say I don't trust judge Arun Mishra .
That morning was also Mr Dave's article in @IndianExpress 1n— Tehseen Poonawalla (@tehseenp) January 14, 2018
In that article Mr Dave attacked the CJI. He now wants me to COME to the same CJI and say justice Arun Mishra is close to BJP! If the CJI would ask me for proof ..what do i say ? Is that NOT contempt ? Why drag me into it . Also pls understand there was another petitioner 2n
— Tehseen Poonawalla (@tehseenp) January 14, 2018
Even if I withdrew my petition the other petitioner was NOT withdrawing it. So whatever was to happen in the SC would anyway happen. Atleast this way Mr Dave could fight for this cause . In my cow vigilantism case CJI Dipak Mishra put the Govt on the mat 3n
— Tehseen Poonawalla (@tehseenp) January 14, 2018
Dear Mr Dave , I will DIE but never ever join forces with the Sangh . When i fight cow vigilantism or Aadhar how come I am NOT a plant? I regret .. I believed in you. But I'm also glad..I did not become a pawn!
End— Tehseen Poonawalla (@tehseenp) January 14, 2018
चैनल से बातचीत में पूनावाला ने कहा कि दवे ने उन पर भी केस को वापस लेने का दबाव बनाने की कोशिश की थी। पूनावाला के मुताबिक दवे ने उन्हें कथित तौर पर यह समझाने की कोशिश की कि जस्टिस अरुण मिश्रा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के ‘गुर्गे’ हैं और उनके नेतृत्व वाली बेंच को इस केस की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
पूनावाला ने दावा किया दवे सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील के तौर पर पेश होने के लिए तैयार हो गए थे, लेकिन यह जानने के बाद कि इस मामले की सुनवाई अरुण मिश्रा करेंगे, उन्हें सुझाव दिया कि इसे सुप्रीम कोर्ट से वापस लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर करना चाहिए।
पूनावाला ने जब याचिका को वापस लेने से इनकार कर दिया तो दवे उनसे नाराज हो गए और कहा कि अब कोर्ट में तुम खुद अपना पक्ष रखना। पूनावाला ने दावा किया कि शुक्रवार को जब मामले की सुनवाई चल रही थी तो किसी भी वादी की तरफ से पेश न होने वाले दवे ने बेंच के सामने कहा कि पूनावाला को इस केस को वापस लेने की इजाजत देनी चाहिए। ‘जनता का रिपोर्टर’ ने इसे बारे में दवे से प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
Rifat Jawaid on the revolt by Supreme Court judges
Posted by Janta Ka Reporter on Friday, 12 January 2018
CJI के खिलाफ जजों ने खोला मोर्चा
बता दें कि शुक्रवार को आजाद भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने मीडिया के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए। अभूतपूर्व घटना में जजों ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) दीपक मिश्र के खिलाफ सार्वजनिक मोर्चा खोल दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चारों जजों ने एक चिट्ठी जारी की, जिसमें सीजेआई की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
सीजेआइ के बाद वरिष्ठता में दूसरे से पांचवें क्रम के जजों जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एमबी लोकुर व जस्टिस कुरियन जोसेफ ने आरोप लगाया कि ‘सुप्रीम कोर्ट प्रशासन में सब कुछ ठीक नहीं है। कई चीजें हो रही है जो नहीं होनी चाहिए। यह संस्थान सुरक्षित नहीं रहा तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।’ जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि हमने हाल में सीजेआइ को पत्र लिखकर अपनी बात रखी थी। शुक्रवार को भी शिकायत की, लेकिन वह नहीं माने।
इसीलिए लोकतंत्र की रक्षा के लिए मीडिया के सामने आना पड़ा। उन्होंने मीडिया को सात पेज की वह चिट्ठी भी बांटी जो सीजेआइ को लिखी थी। उसमें पीठ को केस आवंटन के तरीके पर आपत्ति जताई गई है। जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के एक मुद्दे का तो उल्लेख है, पर माना जा रहा है कि यह खींचतान लंबे अर्से से चल रही थी। शायद सीबीआइ जज बीएच लोया की मौत का मुकदमा तात्कालिक कारण बना, जिस पर शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट की अन्य बेंच में सुनवाई थी।
जज लोया की मृत्यु पर बड़ों के संदेह को छोड़ दें तो भी हर भारतीय बालक को इर पर संदेह है कि निष्पक्ष जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? जांच की मांग होने पर जांच को रोके जाने से ही संदेह पैदा होने लगते हैं. फिर जांच क्यों न हो? क्या जांच सिर्फ इसलिए न हो कि इससे अमित शाह का नाम जुड़ा है?