राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी को लोकतांत्रिक देश की अब तक की ‘सबसे स्वीकार्य’ प्रधानमंत्री बताते हुए उनकी निर्णायक क्षमता को याद किया। मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी नेतृत्व को सांगठनिक मामलों में तेजी से निर्णय लेने का परोक्ष संदेश देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री के काम करने के निर्णायक तरीके को याद किया जिस कारण 1978 में कांग्रेस में दूसरा विभाजन होने के कुछ महीने बाद ही राज्य चुनावों में पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की।राष्ट्रपति ने विशिष्ट अतिथियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शनिवार(13 मई) को कहा कि वह 20वीं सदी की महत्वपूर्ण हस्ती थीं और भारत के लोगों के लिए अभी भी वह सर्वाधिक स्वीकार्य शासक या प्रधानमंत्री हैं। मुखर्जी ने अतीत को याद करते हुए कहा कि 1977 में कांग्रेस हार गई थी। मैं उस समय कनिष्ठ मंत्री था। उन्होंने मुझसे कहा था कि प्रणब, हार से हतोत्साहित मत हो। यह काम करने का वक्त है और उन्होंने काम किया।कांग्रेस में 1978 में दूसरे विभाजन को याद करते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि इंदिरा गांधी को दो जनवरी 1978 को पार्टी अध्यक्ष चुना गया और 20 जनवरी तक कुछ दिनों के अंदर उन्होंने कार्य समिति के गठन को पूरा कर लिया, संसदीय बोर्ड, पीसीसी और एआईसीसी का गठन किया और पार्टी को महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, असम और नेफा विधानसभा चुनावों का सामना करने के लिए तैयार किया।
उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद उनके नेतृत्व में पार्टी ने आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में दो तिहाई बहुमत से जीत दर्ज की और महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी बनाया जहां पार्टी ने कांग्रेस से अलग हो चुके धड़े के साथ मिलकर सरकार बनाई।
राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीति के अपने सबसे खराब वक्त में इंदिराजी अपने आप को ज्यादा कामों में लगाए रखतीं थीं। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा देश हित में लिए गए अनेक कठोर निर्णयों को भी याद किया। मुखर्जी ने स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त कराने के लिए उनके निर्णय का खास तौर पर जिक्र किया।
अगले स्लाइड में पढ़ें, सोनिया गांधी ने क्या कहा?