“आईंदा इस तरह का तुगलकी फरमान सुनाने से पहले उसका देश की जनता पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन जरूर करा लीजिएगा”

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आज आपकी कालाधन पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक अर्थात नोटबंदी को एक माह पूरे हो चुके है पर नोटबंदी को लेकर जो दावे और वादे आपने लोगों से किए थे उनका जरा भी असर होता दिखाई नही दे रहा है।

शुरू शुरू में नये नोटो की कमी ने लोगों को हलाकान किया तो कभी बार बार बदलते नियमों ने लोगों की मुश्किले बढ़ाई। जिस जोश और मजबूत इरादों के साथ आपने नोटबंदी का ऐलान किया था वो धीरे धीरे कमजोर होता चला गया।

और अब बात यहाँ तक आ पहुँची है की लोगों ने आपके इस आईडिये को सुपर फ्लॉप कहना शुरू कर दिया है। पूरे महीने देशभर मे आपके इस फरमान से हाहाकार मचा हुआ था और शायद बैंकों की कतारों मे भूखे प्यासे परेशानहाल लोगों को देखकर आपका मन भी एकाध बार तो विचलित जरूर हुआ होगा।

अपने खून पसीने की कमाई को बदलवाने बैंक की कतारों मे बदहवास आम जनता कितना परेशान हुई ये बात किसी से छिपी नही है। यूं तो आप नोटबंदी का आदेश कालेधन और भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने के लिए लेकर आये थे मगर कहीं भी एक ऐसा उदाहरण (शुरू के एक सप्ताह छोड़कर) देखने को नही मिला जब आपके इस फरमान से किसी भ्रष्टाचारी की नींद हराम हुई हो।

वो अपनी काली कमाई (पुराने नोटों) को कमीशन पर बदलवाकर चैन की नींद सो रहा है। रिश्वतखोर अफसर आज भी रिश्वत ले रहा है फर्क सिर्फ इतना आया है की अब वो नये नोटों मे रिश्वत ले रहा है।

नोटबंदी से ना तो सीमापार से संचालित आतंकवाद की कमर टूटी और ना ही भ्रष्टाचारियों के हौसले पस्त हुए और ना ही कालाधन सामने आया जैसा की आपने नोटबंदी की घोषणा करते वक्त दावा किया था।

आज एक माह पश्चात भी आपके सारे दावों की सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। नोटबंदी के दौरान जहाँ एक तरफ आम आदमी को शादी ब्याह और अतिआवश्यक के लिए पैसों के लाले पड़े हुऐ थे वहीं दूसरी तरफ आपकी पार्टी के नेता/मंत्री शादियों मे खर्च के सारे पिछले रिकॉर्ड तोड़ रहे थे इन खर्चीली शादियों ने नोटबंदी के बाद से बैंको मे नगद निकासी की तयसीमा पर भी सवाल खड़े किये।

बैंकों की हीलाहवाली और तानाशाही का आलम ये था की एक तरफ बैंक की कतारों मे नोट बदलने के लिए खड़े लोगों की जाने जा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ रसूखदार लोगों की बैंकों की मिलीभगत से पीछे के दरवाजों से गड्डियों पर गड्डियाँ बदली जा रही थी।

नोटबंदी के तुरंत बाद जहाँ आटा दाल की दुकानें सूनी मच गई वहीं दूसरी तरफ सराफा मे रौनक बढ़ गई भ्रष्टो रातभर में किलो से सोने/चाँदी खरीद डाले आखिर ये सब क्या था इतने सख्त आदेश के बाद भी इतनी हीला हवाली कैसे हुई की भ्रष्टाचारी और कालाधन रखने वाले बच निकलनें में कामयाब हो गए।

आखिर ये कैसे संभव हुआ की जिसे परेशान होना था वो तो नही हुआ और जिसे बिल्कुल भी नहीं परेशान होना था वो अब तक परेशान है आखिर ये कालेधन वालों पर कैसी कार्यवाई थी जिसका असर अब तक नज़र नहीं आ रहा है।

इन सब बातों का निष्कर्ष तो यही निकलता है की आपने नोटबंदी फैसला आधी अधुरी तैयारियों, बिना विशेषज्ञयों की राय और इसके दुष्प्रभाव को दरकिनार करके लिया था जिसका दुष्परिणाम देश की भोली भाली आम जनता को भुगतना पड़ा वो भी ना जाने कितने तानों और यातनाओं को सहते हुए।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी देश के भोले भाले लोगों को इस तरह के संकट मे डालकर उन्हें देशहित के नाम पर सबकुछ बर्दाश्त करने की सलाह देना जितना आसान नज़र आता है वास्तव मे वो इतना आसान नहीं है जब गरीब के घर का चुल्हा किसी सरकारी फरमान की वजह से बुझता ना तो वो गरीब जिसे अच्छे दिनों का सपना दिखाकर इतने बुरे दिनों की तरफ ढकेल दिया गया हो वो खुद को बहोत ठगा हुआ महसूस करता है।

अतः मेरा आपसे विनर्म आग्रह है की आईंदा इस तरह का कोई भी तुगलकी फरमान सुनाने से पहले उसका देश की जनता पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन जरूर करा लीजिएगा अच्छे दिन ना सही कम से कम आम जनता के दिन और बुरे ना बन जाये इसका थोड़ा-बहुत ख्याल जरूर रखियेगा।

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