शीतल सिंह
तमिलनाडु की कुल 232 सीटों में 188 पर बीजेपी ने सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किये थे और तमाम सीटों पर इसने जमानत ज़ब्त कराने का रिकार्ड बनाया तो पांडिचेरी की सभी सीटों पर। किसी राष्ट्रीय पार्टी का शायद ही इतना बुरा नतीजा किसी राज्य में आया हो । बीजेपी को यहाँ एक भी सीट नहीं मिली !
लोग भूल जाते हैं कि बीते लोकसभा चुनावों (2014)में पांडिचेरी की सीट NDA ने जीती थी और तमिलनाडु में भी उसे लोकसभा की एक सीट मिली थी पर इस बार दोनों जगह उसे सिफ़र मिला है । तमिलनाडु में उसे लोकसभा में 5.5 % वोट मिले थे जो घटकर 2.9% रह गये हैं । पांडिचेरी में तो ये सिर्फ 2.5% हैं ।
केरल को लेकर भी भारी ग़लतफ़हमी है । 2014 के लोकसभा चुनावों में केरल में अकेले बीजेपी को 10.30% वोट मिले थे, यह चार विधानसभा सीटों पर सबसे आगे थी । तिरुवनंतपुरम की सीट पर इनके सबसे बूढ़े नेता ओ राजगोपाल कुल सात आठ हज़ार से थरूर से हार गये थे । वही 87 साल के ओ राजगोपाल अपने लोकसभा छेत्र की ही नेमाम विधानसभा से बस किसी तरह जीत गये हैं । कई चुनाव लगातार हार चुके ओ राजगोपाल को मतदाताओं की दया मिल गई । 2011 में वे इसी सीट पर विधानसभा के रनर अप थे ।
इस बार पाँच सीटों पर मोदी जी ने केरल में रैली/ सभा की । अमित शाह तो दर्जनों जगह गये, स्मृति ईरानी ने भी दम भरा और एझवा और नायर समाज की पार्टियों समेत बदनाम श्रीसंत तक को बीजेपी ने सहयोगी बनाया पर कुल वोट प्रतिशत 14.7 तक ही पहुँचा पाये ।
उन सभी सीटों पर बीजेपी हारी जहाँ मोदी जी की सभा हुई ।
पश्चिम बंगाल में 2014 लोकसभा में अकेले बीजेपी को करीब 17 % वोट मिले थे और वह 21 विधानसभा सीटों पर सबसे आगे थी । उसके दो सांसद जीते थे । इस बार गोरखा मुक्ति मोर्चे के साथ उसे कुल 10.8 % वोट मिले हैं और कुल तीन सीट ।
इस तरह अगर आसाम में पैदा किये गये हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण और तीन बार की गोगोई सरकार के खिलाफ जन्मी ऐंटी इनकमबैनसी को छोड़ दें तो ऐसा कुछ नहीं है जिसपर बीजेपी कार्यकर्ता और टीवी स्टूडियोज में बैठे उनके चम्पू भरतनाट्यम करें!
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