आखिरकार लंबे समय से चला आ रहा कयास सच साबित हुआ, उत्तर प्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रेस का साथ छोड़कर BJP का दामन थाम लिया।
वजह उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान को बताया जिसमें राहुल ने मोदी जी पर खून की दलाली करने का आरोप लगाया था।
बहरहाल असल वजह यही थी या कोई और ये तो उनको ही बेहतर पता होगा। उनके भाजपा मे शामिल होने की अटकले कई दिनों से चल रही थी और कल उन्होंने भाजपा मे शामिल होकर सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। कभी खुद को राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी जी की सर्वकालिक समर्थक (फैन) बताने वाली रीता बहुगुणा जोशी ने कभी कहा था कि उनका सबसे बड़ा बैकग्राउंड सेक्यूलर है।
सोनिया गाँधी जी को उदारवादी बताते हुए उनको और राहुल गाँधी का संप्रदायिक ताकतों से लड़ने वाला बताया था। आने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चूनावों मे रीता बहुगुणा जोशी और भाजपा का साथ कितना फलदायी होगा ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन सोशल मीडिया पर जिस तरह से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है उस हिसाब से देखा जाये तो कांग्रेस को कोई खास फर्क पड़ता दिखाई नही दे रहा है। बल्कि कार्यकर्ताओं मे इस बात की खुशी देखी जा रही है कि अच्छा हुआ कि ऐन मौके पर ना जाकर रीता बहुगुणा जोशी चुनाव के काफी पहले ही पार्टी का साथ छोड़कर चली गई।
अगर वो आखरी समय मे कांग्रेस का साथ छोड़ती तो हो सकता था पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचता, बहरहाल देखने वाली बात ये होगी की क्या BJP कार्यकर्ता अपनी इस नई नेत्री को स्वीकार करेंगे क्योंकि अभी कुछ दिनो पहले तक वो भाजपा की विचारधारा और उसकी नीतीयों की आलोचना का कोई भी मौका नही छोड़ती थी, उनकी ट्विटर टाईम लाईन पर मौजूद ट्वीट इस बात का जीवित प्रमाण है कि भाजपा मे शामिल होने से पहले उनके लिए भाजपा की क्या कीमत थी।
JNU प्रकरण से लेकर मुजफ्फरनगर गैंगरेप तक हर बार उन्होंने भाजपा को जमकर आड़े हाथ लिया था और गुजरात के नरसंहार के लिए मोदी जी के मौन को जिम्मेदार बताया था।
गुजरात के लड़की की जासूसी काण्ड पर भी जोशी ने अमित शाह का एक ज़माने में खूब मज़ाक़ उड़ाया था। विडम्बना देखिये कि कल उन्ही अमित शाह के हाथों भाजपा का दामन थामते रीता बहुगुणा जोशी खुद को धनि समझ रही थी। ज़ाहिर है, जनता है सब जानती है, उन्हें भी पता है जोशी और उनके भाई विजय बहुगुणा की अवसरवाद की राजनीति क्या है।
भाजपा को भी शायद जल्द ये एहसास होगा कि जोशी कभी भी कदावर नेता नहीं थी। कांग्रेस की पिछली अनगिनत ग़लतियों में एक ग़लती ये भी थी कि इसने जोशी जैसे मामूली दर्जे की नेता को उत्तर प्रदेश की कभी बागडोर सौंपी थी।
कुल मिलाकर जैसे जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चूनाव नज़दीक आते जायेंगे दो विपरीत विचारधाराओं के मिलन की इस तरह की और भी घटनायें देखने को मिल सकती है क्योंकि देश के इस सबसे दिलचस्प प्रदेश की दिलचस्प चुनावी बिसात पर कोई भी पार्टी अपने आपको कमजोर दिखाने की बेवकूफी नही करना चाहेगी।
जहाँ कांग्रेस अपने युवराज की किसान पदयात्रा की बदौलत जोरदार चुनावी शुरुआत कर चुकी है वहीं भाजपा ने रीता बहुगुणा जोशी के बहाने कांग्रेस मे सेंध लगाने की शुरुआत कर दी है। उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे बेहद दिलचस्प होने वाले है इसमे कोई दो राय नही है।