मुंशी प्रेमचंद जयंती विशेष: जब एक बड़े नवाब साहब ने प्रेमचंद को अपने घर दावत पर बुलाया

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कराची के एक बड़े नवाब सहाब को अदबनवाजों, साहित्यकारों और शायरों व कवियों का सम्मान करना बहुत भाता था। यह आजादी से पहले की बात थी तब तक मुल्क का बटवारा न हुआ था। उन दिनों देश के बड़े बनिये, लाला, नवाब सरीखें लोग कला-संगीत और साहित्य के संरक्षक हुआ करते थे। इसलिए यह लोग कला व साहित्य से जुड़े हुए लोगों का सम्मान करते थे व उनके सम्मान में बड़ी-बड़ी दावतें आयोजित करते थे।

प्रेमचंद ने अपना सारा जीवन साहित्य की सेवा करते हुए निर्धनता से गुजारा था। अपने आखिरी दिनों तक वह बेहद सादगी से रहे और गरीब-मजदूर की आवाज बनकर लिखते रहे। जब प्रेमचंद के लिखे ने सारे देश में मकबूलियत हासिल कर ली थी, तब नवाब साहब ने सोचा कि क्यों न प्रेमचंद के सम्मान में एक बड़ी दावत का आयोजन किया जाएं, जिसमें शहर के सभी नामचीन और बड़े लोगों को बुलाया जाए प्रेमचंद के सम्मान में

तब नवाब साहब अपनी इस ख्वाहिश के लिए प्रेमचंद के घर पहुंच और अपनी मंशा जाहिर की। प्रेमचंद ने हां कर दी और नवाब साहब की दावत कुबूल कर ली। प्रेमचंद को दावत की बात याद ही न रही वो रोज की तरह की अपने काम में व्यस्त थे। दिनभर का काम निबटाने के बाद शाम को उन्हें ख्याल आया कि आज तो नवाब साहब ने उन्हें अपने यहां दावत पर बुलाया है। वो उठे और ऐसे ही चल दिए।

नवाब साहब की कोठी पर पहुंच कर प्रेमचंद ने देखा कि दूर तक सारे इलाके को रोशनी से सजाया गया था। गाड़ियों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हुई थी, बग्गियों की कतारें दिखाई पड़ती थी। सजे-धजे हुए मेहमानों की आमद नवाब साहब की कोठी की और बढ़ रही थी। शहर के सारे रईस और बड़े लोगों को खासतौर पर बुलाया गया था।

दरवाजे पर पहंुचकर प्रेमचंद ने देखा कि बड़ी-बड़ी पगड़ी वाले दरबान सलाम ठांेकते हुए मेहमानों को शान के साथ अंदर ले जा रहे है। प्रेमचंद ने खुद को देखा और फिर उन दरबानों को देखा। वह अपने घर से धोती-कुर्ता पहने हुए ही निकल आए थे वो भी दिनभर का मैला और मुचड़ा हुआ।

प्रेमचंद को थोड़ा संकोच हुआ कि कहीं दरबान उन्हंे अंदर आने से रोक न दे, लेकिन फिर उन्होंने सोचा की नवाब साहब ने उनकी भी दावत की है वो भला क्यों रोकेगा। वह अंदर दाखिल हो गए लेकिन दरबानों ने उन्हें नहीं रोका, अंदर पहुचकर प्रेमचंद ने देखा कि एक से बढ़कर एक अमीर आदमी, महफिल की शान बढ़ा रहा है। लजीज पकवान सजाए गए है। बड़े सरकारी अफसर इधर से उधर घुमते हुए दिख रहे थे। प्रेमचंद को कोई न जानता था। वह इस भीड़ को देख रहे थे तभी लोगों से घिरे हुए नवाब साहब दिखें।

नवाब साहब ने भी प्रेमचंद को देख लिया और दौड़े-दौड़े प्रेमचंद की तरफ आए और गले मिलते हुए उनका अभिनंदन करते हुए लोगों के बीच में ले आए। नवाब साहब ने लोगों की और मुखातिब होते हुए कहा कि यहीं है वो प्रेमचंद जिनका जिक्र हमारी महफिलों में होता है, यहीं वो प्रेमचंद है जिनके लेखन का दुनियाभर में जिक्र है।

वहां मौजूद सभी लोग हैरान थे कि जिसके सम्मान में यह महफिल आयोजित की गई है वो इतना सरल, सादा और आम सा दिखने वाला व्यक्ति होगा। यह सादगी ही प्रेमचंद की पहचान थी। प्रेमचंद का सारा लेखन भारत के आमलोग की व्यथा का लेखा-जोखा था जो खुद भी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था। वाराणसी के लमही गांव में 31 जुलाई 1880 को प्रेमचंद का जन्म हुआ था, हिन्दी व ऊर्दू साहित्य के महान उपन्यासकार और लेखक मुंशी प्रेमचंद की आज 137वीं जयंती है। आज देशभर में साहित्य प्रेमी प्रेमचंद की जयंती मना रहे है।

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