लोगों के विरोध के बावजूद 67 साल बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ताइवान के राष्ट्रपति मा यिंग-जीओ के बीच शनिवार को सिंगापुर में ऐतिहासिक बैठक हो रही है।
1949 में चीन में गृह युद्ध के समाप्त होने के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के नेताओं की मुलाकात हो रही है।
दरअसल चीन ताइवान को अपना ही एक प्रांत मानता है जिसका एक न एक दिन मुख्य भूमि में विलय होगा। इसके लिए चीन ताकत का इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं कर सकती है।
न्यूज एजेंसी एएफपी के मुताबिक शी और मा की मुलाकात को लेकर ताइपे में लोग विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं इसके कारण ताइपे के हवाई अड्डे से कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है। वहीं मा के समर्थन में भी एक छोटा गुट ताइपे के सोंगशान हवाई अड्डे पहुंचा है।
इस दौरान चेन नाम के एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “मा जन भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और उन्हें खाड़ी पार के नेता से मिलने का कोई अधिकार नहीं है।”
राजनीतिक तौर पर यह मामला कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन के एक अधिकारी का कहना है कि दोनों नेता एक-दूसरे को राष्ट्रपति कहने के बजाय शी और मा कहेंगे।
इस बैठक में किसी बड़े समझौते की उम्मीद नहीं है लेकिन मा का कहना है कि इसका मकसद शांति को बढ़ावा देना और दुश्मनी की भावना को कम करना है।
मा ने कहा कि दक्षिण चीन सागर विवाद का मुद्दा इस बैठक में नहीं उठेगा।
मा के 2008 में सत्ता संभालने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार आया है। उनकी कुओमिनतांग पार्टी (केएमटी) को चीन समर्थक माना जाता है।
वहीं चीन के सरकारी मीडिया ने इस मुलाकात को काफी अहमियत दी है लेकिन ताइवान के तरफ से मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
लेकिन विपक्षी दलों और कार्यकर्ताओं ने मा से इस बैठक में हिस्सा नहीं लेने का अनुरोध किया है।