मोदी सरकार का सामाजिक कार्यक्रमों में फंड कटौती से कमजोर हुई एड्स के खिलाफ लड़ाई

0

मोदी सरकार ने सामाजिक खर्च के फंड में कटौती करके एड्स के खिलाफ भारत की लड़ाई को कमजोर कर दिया है। अब यह लड़ाई अंतिम सांस ले रही है। फरवरी में मोदी सरकार ने 2015-16 के सेंट्रल एड्स बजट में 22 फीसदी की कटौती कर दी। बाकी फंड का बोझ राज्य सरकारों से बर्दाश्त करने के लिए कहा गया है। फंड कटौती के कारण हेल्थ वर्करों की छुट्टी कर दी गई है और घातक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को भी सीमित कर दिया गया है।

2013 में करीब 21 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे जिनमें से ज्यादातर मामले भारत-प्रशांत क्षेत्र में पाए गए। लेकिन पिछले 14 सालों में नए संक्रमण की दर करीब 20 फीसदी कम हुई है। हालांकि विश्व स्तर पर एड्स संक्रमण के मामले में कमी हुई है लेकिन भारत में इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है। पिछले साल भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में 3,40,000 नए संक्रमण हुए हैं। इस स्थिति में रोकथाम के कार्यक्रम में किसी तरह की कटौती एड्स के मामले को बढ़ाने में और सहायक होगी।

फण्ड कमी से सरकार का एड्स विरोधी कार्यक्रम पिछले एक साल से काफी कमजोर होता जा रहा है| वहीँ ब्यूरोक्रेटिक लेटलतीफी और फंड की कमी के कारण कॉन्डम और दवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

उसके बाद एक और सितम यह हुआ कि मोदी के गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद शहर में एड्स रोकथाम इकाई ने जनवरी से अपने स्टाफ को सैलरी नहीं दी है। यह जानकारी इस यूनिट ने अपने नॉन गवर्नमेंटल पार्टनर को 29 जून को लेटर लिखा था, उससे सामने आई है। सुरक्षित यौन संबंध को बढ़ावा देने वाले कम्यूनिटी वर्करों की संख्या में अगस्त से दिल्ली में 80 फीसदी कटौती की जाएगी।

वहीं मोदी सरकार इस बात से इनकार करती है कि इसने फंडिंग में कटौती की है। इस साल मोदी सरकार ने राज्यों को केंद्रीय टैक्स में भारी हिस्सा लेने के लिए बदले में जनकल्याण की स्कीमों पर ज्यादा योगदान देने के लिए कहा। लेकिन राज्य सरकारें सामाजिक कार्यक्रमों पर अपने राजस्व का ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं हैं।

सुधार को लागू होने के चार महीने बाद दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात की एड्स रोकथाम इकाइयों ने कहा है कि उनकी सरकारों ने योगदान देना शुरू नहीं किया है।

नागालैंड की प्रदेश एड्स अधिकारी, एल. वाटिकला ने बताया, ‘सर्वाधिक एचआईवी दर वाले राज्य नागालैंड में फंड उपलब्ध न कराने का मतलब है कि इस लड़ाई से लड़ने के लिए म्यांमार की सीमा से सटी पहाड़ियों में एड्स वर्कर्स अपने घरों से बाहर आने में असमर्थ हैं।’

Previous articleMumbai: Woman tries to tell car owners involved in accident to move, ends up with 7 stitches
Next article‘दिल्ली पुलिस राज्य सरकार को सौंपी गई तो होगा इतिहास का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन’- बस्सी