आपने अक्सर घरों में टगें भगवानों की तस्वीरों वाले कलैण्डर जरूर देखे होगें। सुन्दर-सुन्दर चित्रों से सजे हुए धार्मिक कलैण्डर। छोटे महानगरों के घरों में इस तरह के कलैण्डर या फोटो फ्रेम एक अनिवार्य चीज होती है।
अगर आप उन तस्वीरों को गौर से देखें तो नीचे बहुत छोटे में आपको योगेन्द्र रस्तोगी लिखा मिलेगा। धार्मिक तस्वीरों को बनाने वाला हमारे देश का एकमात्र नाम अब इस दुनिया में नहीं रहा।
धार्मिक कलैण्डरों और तस्वीरों से अपने घरो को सजाना हम भारतीयों की पुरानी परम्परा रही है। दिवाली, दशहरा या अन्य धार्मिक त्यौहारो पर तो इन कलैण्डर्स और तस्वीरों की बिक्री खूब जोर-शोर से होती है।
लेकिन अब इन नये धार्मिक कलैण्डरों के आने का सिलसिला थम जाएगा। योगेन्द्र रस्तोगी के चले जाने से हमारी इस परम्परा में अब एक ठहराव आ जाएगा। योगेन्द्र जी का स्टूडियों मेरठ के प्रहलाद वाटिका में था, जो पुराने निगार सिनेमा के पास वाली गली से होकर जाता है।
अपने दोमंजिला स्टूडियों में योगेन्द्र जी अपने साथ लियाकत अली के साथ वर्षो से इस साधना में लीन थे। योगेन्द्र जी हिन्दू-देवी देवताओं की तस्वीरे बनाने थे जबकि उनके मित्र और सहयोगी लियाकत अली मुस्लिम मक्के और काबे वाली तस्वीरे बनाया करते है।
आप कोई सा भी धार्मिक कलैण्डर देख लिजिए वो अगर कहीं बना है तो सिर्फ रस्तोगी स्टूडियों में योगेन्द्र रस्तोगी या लियाकत अली के द्वारा। स्वभाव से बेहद सरल और सौम्य योगेन्द्र जी हमेशा इस बात पर अफसोस व्यक्त करते थे कि आज के नामी चित्रकारी धार्मिक तस्वीरों को बनाने से गुरेज़ करते है जबकि नये चित्रकार कम पैसे मिलने की वजह से धार्मिक तस्वीरें बनाना नहीं चाहते थे। ऐसे में योगेन्द जी आजीवन अपनी साधना में लीन रहे और दुनिया को उनकी धार्मिक अस्थाओं के चेहरों से रूबरू कराते रहे।