हंगामे के बीच लोकसभा में एक बार फिर पेश हुआ तीन तलाक बिल, कांग्रेस ने किया विरोध

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मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा पर रोक लगाने के मकसद से जुड़ा नया विधेयक केंद्र की मोदी सरकार द्वारा शुक्रवार को लोकसभा में हंगामे के बीच एक बार फिर पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे सदन में पेश किया। लोकसभा से जुड़ी कार्यवाही सूची के मुताबिक ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019′ लोकसभा में पेश किया। कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियां इस तीन तलाक बिल का विरोध कर रही है।

रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक बिल का विरोध करने वालों से कहा- जनता ने हमें कानून बनाने के लिए चुना है। कृपया सदन को अदालत न बनाएं। केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारा कहना बार बार है। बहस में विस्तार से कहूंगा। यह सवाल न सियासत का है। न इबादत का है। न पूजा का है। न धर्म का है। न प्रार्थना का है। यह सवाल नारी न्याय का है। नारी न्याय, नारी गरिमा, नारी इंसाफ। और आज हमको अपने अंदर यह सवाल पूछना पड़ेगा कि आजादी के 70 साल बाद जब भारत का संविधान है, तो क्या मतलब है कि खबातीन कोई हो, बहन कोई हो… कहा तलाक, तलाक, तलाक… तुम घर से बाहर, तुम्हारी कोई गुजारिश नहीं।”

वहीं, बिल का विरोध करते हुए हैदराबाद से एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘अगर किसी गैर मुस्लिम को केस में डाला जाए तो उसे 1 साल की सजा और मुसलमान को 3 साल की सजा। यह आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन नहीं है? आप महिलाओं के हित में नहीं हैं। आप उन पर बोझ डाल रहे हैं। 3 साल जेल में रहेगा। मेंटेनेंस कौन देगा? आप देंगे? आपको मुस्लिम महिलाओं से इतनी मोहब्बत है। केरल की हिंदू महिलाओं से क्यों मोहब्बत क्यों नहीं है। क्यों सबरीमाला के फैसले के खिलाफ आप हैं? यह गलत हो रहा है।’

इसके अलावा कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लोकसभा में मोदी सरकार के नए तीन तलाक बिल का विरोध किया है। तीन तलाक बिल का विरोध करते हुए थरूर ने कहा कि केवल एक समुदाय को ध्यान में रखकर बिल क्यों? मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में इस बिल से कोई बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि इस बिल से मुस्लिम महिलाओं की हालत में कोई सुधार होने वाला नहीं है और न ही उनके हितों की रक्षा होने वाली है। मैं इस बिल का समर्थन नहीं करता हूं।

विपक्ष के विरोध के बाद तीन तलाक बिल को लोकसभा में पेश करने के लिए वोटिंग कराई गई। वोटिंग के बाद तीन तलाक बिल के समर्थन में 186 वोट पड़े, जबकि विरोध में 74 वोट पड़े। इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से विधेयक को पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया।

कैबिनेट ने इसी महीने तीन तलाक पर नए विधेयक को दी थी मंजूरी

केंद्रीय कैबिनेट ने ‘तीन तलाक’ (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए इस महीने 12 जून को नए विधेयक को मंजूरी दी थी। यह विधेयक पूर्ववर्ती भाजपा नीत राजग सरकार द्वारा फरवरी में जारी एक अध्यादेश का स्थान लिया। पिछले महीने 16 वीं लोकसभा के भंग होने के बाद पिछला विधेयक निष्प्रभावी हो गया था, क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था। दरअसल, लोकसभा में किसी विधेयक के पारित हो जाने और राज्यसभा में उसके लंबित रहने की स्थिति में निचले सदन (लोकसभा) के भंग होने पर वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है।

गौरतलब है कि मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक को विपक्षी दलों के विरोध का सामना करना पड़ा था। वह विधेयक तलाक ए बिद्दत की प्रथा को दंडनीय अपराध बनाता था। सरकार ने सितंबर 2018 और फरवरी 2019 में दो बार तीन तलाक अध्यादेश जारी किया था। इसका कारण यह है कि लोकसभा में इस विवादास्पद विधेयक के पारित होने के बाद वह राज्यसभा में लंबित रहा था।

तीन साल की कैद की सजा

मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश, 2019 के तहत तीन तलाक के तहत तलाक अवैध, अमान्य है और पति को इसके लिए तीन साल की कैद की सजा होगी। सत्रहवीं लोकसभा के प्रथम सत्र में नई सरकार की योजना तीन तलाक की प्रथा पर पाबंदी लगाने सहित 10 अध्यादेशों को कानून में तब्दील करने की है। दरअसल, इन अध्यादेशों को सत्र के शुरू होने के 45 दिनों के अंदर कानून में तब्दील करना है, अन्यथा वे निष्प्रभावी हो जाएंगी।

 

 

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