NDTV ban: लोकतंत्र के 125 करोड़ रक्षक अभी इतने कमजोर नही हुए है कि वो सरकार के इस अलोकतांत्रिक फैसले को मान ले

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आम आदमी की जिंदगी मे सरकार की दखलअंदाजी का दायरा अप्रत्यक्ष रूप से दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। हम क्या खायें से शुरू हुआ ये सफर, हम क्या बोले, हम क्या पहने, से होता हुआ हम क्या देखें तक आ पहुंचा है। लोकसभा चुनावो के समय कालेधन, भ्रष्टाचार, आंतरिक सुरक्षा, सैनिक हित और विकास के नाम पर सत्ता मे आने वाली भाजपा, अपने इन मुख्य मुद्दों पर कितनी सफल हो पाई है ये सबके सामने है। इसके विपरीत इस सरकार ने अपने कार्यकाल के ढाई साल किस तरह के मुद्दों मे खर्च किए है ये भी किसी से छिपा हुआ नही है। ताजा मामला लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता पर लिए गए एक विवादित फैसले का है।
पठानकोट अटैक, उरी अटैक, JNU विवाद, कैराना, सर्जिकल स्ट्राइक, काॅमन सिविल कोड, भोपाल एनकाउंटर, ये हाल फिलहाल के ये कुछ मुद्दे है, जिनका मीडिया कवरेज मुद्दो से ज्यादा चर्चा मे बना हुआ है। जिसमे से JNU  विवाद और कैराना तो सिर्फ और सिर्फ मीडिया कवरेज की वजह से ही मुद्दा बने थे। इसमे कोई दो राय नही है, न्यूज रूम मे चल रही डिबेट और बहस का हाल किसी से छिपा हुआ नही है, न्यूज रूम मे बैठे बेठे ही एंकरो का एक साथ कई किरदार निभाना। आरोप भी लगाना और गुनहगार भी साबित कर देना (जैसा की कन्हैया मामले मे कुछ चैनल्स पर देखने को मिला था) अपने आप मे खबरिया चैनलो की संतुलन खोती कार्यशैली का जीता जागता उदाहरण है।
कैराना को कश्मीर बताकर हायतौबा मचाने वाले कुछ चैनलो और उनके एंकरों ने कैराना पर क्या कुछ नही दिखाया ये सब जानते है। जबकि अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट और खुद कैराना के लोगों ने सारी खबरों को सिरे से नकार दिया था। अभी हाल ही मे सर्जिकल स्ट्राइक के बाद न्यूज रूम को वाॅर रूम बनाकर दिखाया गया (खूफिया सैन्य रणनीति का) तमाशा सबने देखा था। जो की शायद दुनियाँ मे अपनी तरह का पहला मामला था। जिसमे भारतीय सेना द्वारा भविष्य मे पाकिस्तान पर की जाने वाली अनुमानित सैन्य कार्रवाई का सरेआम माॅडल बनाकर ढिंढोरा पीटा गया था। जो की सेना की सुरक्षा की दृष्टि से सरासर गलत था। फिर भी सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय को इन सब खबरों मे कुछ भी असंतुलित दिखाई नही दिया। मंत्रालय को गलत नजर आया तो सिर्फ एक चैनल (जो हमेशा सरकार की हर नीती का विरोध करने मे मुखर रहा है जो की पत्रकारिता का असल कर्तव्य है) और आनन फानन मे उसपर एक दिन के प्रतिबंध का आदेश भी दे दिया गया वो भी बिना सोचे समझे की मंत्रालय के इस आदेश का एक लोकतांत्रिक समाज मे क्या संदेश जायेगा।
हालांकि इस लोकतांत्रिक देश की मिट्टी मे जन्म लेने वाले भारत देश के लोकतंत्र के 125 करोड़  रक्षक अभी इतने कमजोर नही हुए है की वो सरकार के इस अलोकतांत्रिक फैसले को सीधे मान ले, NDTV पर लगाये गए इस बैन का पूरे देश मे तीर्व विरोध नजर आ रहा। सोशल मीडिया यूजर्स ने NDTV के समर्थन मे अपनी wall ब्लैक रंग मे बदल दी है, ट्विटर और फेसबुक दोनों पर लोगो मे इस प्रतिबंध को लेकर खासी नाराजगी देखी जा रही है, कई लोगो ने इस प्रतिबंध की तुलना आपातकाल के दिनों से की है। राजनैतिक, सामाजिक और पत्रकारिता जगत के लोग भी NDTV के समर्थन मे उतर आये है।
NDTV ने एक बयान जारी करके कहा है की उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का आदेश प्राप्‍त हुआ है, बेहद आश्चर्य की बात है कि NDTV को इस तरीके से चुना गया, जबकी पठानकोट अटैक पर लगभग सभी समाचार चैनलों और अखबारों की कवरेज एक जैसी ही थी, वास्‍तविकता में NDTV की कवरेज विशेष रूप से संतुलित थी, आपातकाल के काले दिनों के बाद जब प्रेस को बेड़ियों से जकड़ दिया गया था। उसके बाद से NDTV पर इस तरह की कार्रवाई अपने आप में असाधारण घटना है। इसके मद्देनजर NDTV इस मामले में सभी विकल्‍पों पर विचार कर रहा है।
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