सैफ़ बिल गेट्स रख देतें अपने साहबज़ादे का नाम तो क्या वह मीलियन बीलियन बना लेता?

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दिक्कत तैमूर नाम से नहीं है। दिक्कत तैमूर के अब्बा का सैफ़ अली ख़ान पटौदी होना और अम्मा का करीना कपूर होना है। वर्ना बचपन से आज तक तो हमने कितने तैमूर देखे न इन तैमूरों की तरफ़ किसी ने नज़रे इनायत की और न ही तेढ़ी निगाह डाली।

न ही उनके नाम को पुकारते हुए किसी का ध्यान किसी तैमूर लंग की तरफ़ गया। सालों पहले मोहल्ले में एक ठेलेवाले घसीटा रहा करते थे। उन्होंने अपने बेटे का नाम किसी पढ़े-लिखे जानकार शख़्स से रखवाया, उन्होंने बच्चे को तैमूर नाम दिया।

Photo: janta ka reporter

बाद अज़ां अम्मा अब्बा ने हमेशा तैमूरवा ही पुकारा। उन विचारों को तो पता भी नहीं होगा के उनके लख़्ते-जिगर और नूर-ए-नज़र के नाम का मतलब लोहा होता है, या पीतल या फिर कांसा।

बिचारे उन तैमूरवा की ऐसी कोई हैसियत भी नहीं थी की किसी का ध्यान उनके नाम की तरफ़ जाता। और वो ट्रोल होने का शर्फ़ हासिल करते।

वैसे मुझे पूरा यक़ीन है कि वे ‘मुसलमान’ जो नवमलूद तैमूर अली ख़ां पटौदी के सपोर्ट में अचानक कूद पड़े हैं वह सैफ़ करीना की बिना निकाह वाली अदालती शादी को तो शादी भी नहीं मानते रहे होंगे लेकिन आज सैफ़ के बेटे के नाम रखने के हक़ में पेश पेश हुए जा रहे हैं।

वहीं वो ‘देशभगत’ क़िस्म के हिंदू जो अपने और रिश्तेदार दोस्तों के बच्चों के नाम ख़ालिस संस्कृत के बड़े-बड़े भारी भरकम और वज़नदार क़िस्म राजाओं, महराजाओं, योद्धाओं, जंगजुओं से मिलते जुलते रखने में हलक़ान पड़े रहते हैं।

वह अचानक से एक फ़िल्मस्टार उर्फ़ मीडियाई ‘नवाब’ (मेरे ख़याल से करीना से ब्याह के बाद मीडिया ने उन्हें कुछ ज़्यादा नवाब नवाब सा फ़ील करा दिया है) के बच्चे के नाम पर हवलनाक़ क़िस्म के डिप्रेशन का शिकार हो गए हैं मानो नन्हें तैमूर बस कल से ही तलवारबाज़ी और घोड़साज़ी सीख कर यलग़ार कर देंगे।

अमां मिंया शेक्सपियर ने या जनने किसने कहा तो है की नाम में क्या रखा है। यूं भी हैप्पी नाम रखने से कोई उम्र भर के लिए हैप्पी नहीं हो जाता। हूरबानो रखने से कोई जन्नत की हूर नहीं हो जाती। सुशीला और सुशील नाम के अच्छे ख़ासे बदमाश लोग मिल जाएंगे या फिर चाचा चौधरी नाम रख लेने भर से क्या किसी का दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलना शुरू हो जाएगा?

सैफ़ बिल गेट्स रख देतें अपने साहबज़ादे का नाम तो क्या वह मीलियन बीलियन बना लेता? वैसे जनाब सौ बातों की एक बात है की हमारे भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों को दूसरों के फ़टे में टांग अड़ाने की पैदाइशी आदत है। कोई राय मांगे या नहीं चिकेन की ग्रेवी से लेकर मुंहासे के दाग़ मीटाने और पांव के सूजन की नुस्खे बताने लगते हैं।

झुमरी तिलैया से लेकर ईलैया राजा के स्ट्डियों तक में बैठे लोग डोनाल्ड ट्रंप की साबक़ा बीवी से लेकर अपने चचेरे चच्चा के चचेरे साले की फ़ैशनेबल बीवी की हेयरकट के स्टाईल पर घंटो बहस मुबाहसा में ग़र्क रह सकतेहैं। तो जी नए नए दुनिया में तशरीफ़ लाए तैमूर को दुनिया मुबारक और ख़ासकर अपने आढ़े-तेढ़े जैसे भी हों भारतीय उपमहाद्वीप और उसके टांग अड़ाऊ किस्म के गपबाज़ मुबारक बाक़ी सब खल्ली बल्ली। वैसे अम्मा अब्बा तो ख़ुश ही होंगे की पूत के पांव पालने में नज़र आ गए। बिना पीआर एजेंसी के पैदा होने के कुछ घंटो के बाद ट्रोल होकर स्टार बन गए हैं।

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