प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 500 और 1000 रूपए के मौजूदा नोटों को अमान्य करार दिए जाने के फैसले के ऐलान के बाद देश में अफरातफरी का माहौल है। मोदी ने दावा किया था कि सरकार के इस कदम का मकसद काले धन, हवाला लेन-देन और आतंकवादियों को मिलने वाले पैसे पर लगाम लगाना है। यदि भविष्य में वाकई ऐसा कुछ होता है तो इसकी तारीफ होगी, लेकिन फिलहाल इस फैसले ने आम आदमी को मुश्किल में डाल दिया है और कई सवाल पैदा कर दिए हैं।
सरकार के इस फैसले से बडे शहरों में रहने वाला मिडिल क्लास तो खुश है, राजनीतिक समर्थन भी अच्छा-खासा मिला है, लेकिन ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में रहने वाले लोग काफी परेशान हैं। उन्हें इस फैसले का मतलब समझ नहीं आ रहा। बडे शहरों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी इस फैसले से फिलहाल मायूस नजर आ रहे हैं , क्योंकि उनका सारा काम नगद से ही होता है। हालांकि, ये उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में लोगों की तकलीफ कम होगी।
बहरहाल, 500 और 1000 के मौजूदा नोटों पर पाबंदी लगाकर 500 और 2000 के नए नोट जारी करने के सरकारी ऐलान से सवाल पैदा होता है कि इस कदम का असल मकसद क्या है ? बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ दिनों बाद 1000 रूपए के नए नोट फिर से जारी किए जाएंगे। क्या इससे कुछ महीनों के लगाम के बाद भ्रष्टाचार फिर नहीं बढ जाएगा ?
पीएम मोदी ने कल ही अपने संबोधन में कहा था कि बडे डेनोमिनेशन यानी ज्यादा मूल्य के नोटों से काला धन जमा करने की प्रवृत्ति बढती है। फिर बडे डेनोमिनेशन के नोट जारी करने की योजना क्यों है ? क्या वाकई मोदी सरकार काले धन पर लगाम लगाने के लिए गंभीर है ?
सरकार का तर्क है कि इससे भारत को कैशलेस इकनॉमी यानी नगद-मुक्त अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन जिस देश में करोडों लोगों के बैंक खाते पिछले दो साल में खुले हों, जिस देश में 90 फीसदी से ज्यादा लोग इंटरनेट बैंकिंग और आॅनलाइन शॉपिंग करते ही नहीं हों, उस देश को कैशलेस इकनॉमी बनाने के लिहाज से क्या ये कदम जल्दबाजी भरा नहीं कहा जाएगा ?
राष्ट्रीय जांच एजेंसी के मुताबिक अभी भारत के बाजार में करीब 400 करोड रूपए के जाली नोट मौजूद हैं। यदि ऐसा है तो यह बाजार में मौजूद कुल धन के 0.05 फीसदी से भी कम है। तो ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि 500 और 1000 के मौजूदा नोट अमान्य कर दिए जाने और फिर 500 और 2000 के नए नोट जारी करने से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी ? दुनिया के कई देशों में बडे डेनोमिनेशन वाले नोटों पर पाबंदी है, लेकिन इससे आतंकवाद पर लगाम लगाने में कामयाबी मिली हो इसके सबूत नहीं मिलते।
क्या सरकार के इस कदम से डीफ्लेशन यानी वस्तुओं एवं सेवाओं की सामान्य तौर पर रहने वाली कीमतों में जबर्दस्त गिरावट का खतरा नहीं पैदा होगा ? डीफ्लेशन उस स्थिति को कहा जाता है जब महंगाई दर शून्य फीसदी से नीचे चली जाती है। यह स्थिति इंफ्लेशन यानी मुद्रास्फीति से भी ज्यादा गंभीर होती है।
यदि 500 और 2000 रूपए के नए नोटों में नैनो ट्रैकर चिप लगी होने की बात सही है, तो सवाल नागरिकों के निजता के अधिकार के हनन का भी पैदा होता है। मीडिया के एक हिस्से में आई कुछ खबरों में बताया गया है कि गलत तरीके से पैसे जमा करने वालों की पहचान नैनो ट्रैकर से आसानी से हो सकेगी। इस लिहाज से देखा जाए तो ये कदम सही है। लेकिन उनका क्या जो ईमानदारी से पैसे कमाते हैं ? नैनो ट्रैकर के जरिए बैंकों और सरकार के पास ग्राहकों का डेटा चला जाएगा। क्या सरकार गारंटी देती है कि इस डेटा का गलत इस्तेमाल नहीं होगा?
पिछले दिनों हमने देखा कि कैसे देश के लाखों लोगों का एटीएम कार्ड डेटा चोरी कर लिया गया। पहले तो सरकार ने इस घपले को दबाने की कोशिश की, लेकिन पोल खुलने के बाद बैंकों पर ठीकरा फोड दिया। पर असल सवाल तो ये है कि एटीएम कार्ड का डेटा चोरी होने से जिन आम लोगों का नुकसान हुआ, क्या उन्हें उनके पैसे मिले, या भविष्य में पैसे मिलने की कोई उम्मीद है ?
अहम सवाल ये भी है कि क्या वाकई 500 और 1000 के नोटों पर पाबंदी से काले धन पर लगाम लग जाएगी ? यदि ऐसा वाकई होता है तो ये उस वक्त क्यों नहीं हुआ, जब मोरारजी देसाई की सरकार ने 1978 में 1000, 5000 और 10000 के नोटों को अमान्य करार दिया था ?
सवाल ये भी है कि विदेशों में जमा काला धन कैसे आएगा ? सरकार इस दिशा में क्या कदम उठा रही है ?
बहरहाल, सरकार के इस फैसले का दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा। लेकिन फिलहाल सच्चाई यही है कि सरकार के फैसले ने आम आदमी को पसोपेश में डाल दिया है और लोगों की शुरूआती प्रतिक्रिया राजनीतिक तौर पर बहुत मायने रखती है!
(लेखक युवा पत्रकार हैं)