“दे दी हमें आज़ादी बिना खड़क बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल”…
गुजरात की पहचान अब तक अहिंसा के पुजारी बापू से, बापू की अहिंसक लाठी से होती आई है जो अंग्रेजी हुक्मरानों के खिलाफ भी कभी हिंसक नहीं हुई।
गुजरात में कांग्रेस शासन के दौरान 1969 में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुये, 2002 में मोदी शासन के दौरान एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुये, हजारों जाने गई, अनेकों घायल हुये,करोड़ों रुपयों की सरकारी और निजी सम्पति का भी नुकसान हुआ।
आज एक बार फिर बापू का गुजरात जल रहा है, नोबत यहां तक आ गई कि हिंसक स्थिति को काबू में लाने के लिये सेना तक तो बुलाना पड़ गया।गुजरात की मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री को खुद शांति बनाये रखने की अपील करनी पड़ी।
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10 लोगों को अबतक अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, सरकारी और निजी सम्पतियों को करोड़ों रुपयों का नुक्सान पहुँचाया गया, वो अलग ।
इस बार हिंसक घटनाएं किसी धर्मं या जाति के बीच टकराव को लेकर नहीं बल्कि स्थानीय लोगों और पुलिस के बीच पैदा हुई स्थिति को लेकर हुई।
ऐसे समय में सरकार और प्रशासन की एक बहुत बड़ी भूमिका और जिम्मेदारी बनती है कि हर संभव प्रयास कर हिंसक स्थिति को काबू में लाकर विश्वास बहाल करते हुए एक सामान्य स्थिति में सब कुछ वापस लाए।
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परंतु इस बार जो कुछ भी हुआ और सामने आया खास तौर से गुजरात पुलिस की भूमिका को लेकर वह बहुत ही चौकाने वाला था, जिस पुलिस और प्रशासन से उम्मीद की जा रही थी कि वह हिंसक और उग्र होते लोगों को रोकेगें, वही पुलिस खुद हिंसक होती नजर आई, सोशल मिडिया के माध्यम से कुछ तस्वीरें और वीडियो सामने आने के बाद गुजरात हाई कोर्ट तक पूछने को मजबूर हो गया कि ” क्या यह पुलिस है या फिर दंगाई”???
तस्वीरों और वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि गुजरात पुलिस किस तरहा से शांत माहौल में भी स्थानीय लोगों की गाड़ियों और सम्पतियों को नुकसान पंहुचा रही है,जबरन लोगों के घरों में घुस कर लोगों को मारा पीटा जा रहा है, किस तरह एक युवा को पुलिस बेहरहमी से पीट रही है।
सोचने की बात यह है कि क्या पुलिस वहाँ हिंसा पर काबू पाने गई थी या फिर खुद हिंसा का हिस्सा बनने?? अगर गुजरात पुलिस किसी के निर्देश पर ऐसा कर रही थी तो वह कौन है?? यह सब कर पुलिस क्या हासिल करना चाहती थी ??? मकसद क्या था?? यह बात सामने आना बेहद जरुरी है।
दिल्ली में भी “वन रैंक वन पैशन” की मांग को लेकर शांतिपूर्व ढंग से जंतर मंतर पर बैठे हमारे पूर्व सैनिकों के साथ भी 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर दिल्ली पुलिस का हिंसक होना सामने आया,जहाँ पूर्व सैनिकों के साथ पुलिस का दुर्वयवहार सामने आया,जिसकी चौ-तरफ़ा निंदा के बाद दिल्ली पुलिस को अपने व्यवहार के लिये माफ़ी भी मंगनी पड़ी।
मैं व्यक्तिगत तोर पर भी हमेशा किसी भी मांग और आंदोलन केलिए हिंसक रास्ता अपनाने के खिलाफ रही हूँ, मांग जायज है या नहीं परंतु हर एक को अहिंसक रूप से अपनी बात रखने का हक़ भारत देश के संविधान ने ही दिया है।
जय हिन्द !!!
The author is an Aam Aadmi Party’s MLA from Chandni Chowk and Parliamentary Secretary, Tourism in Delhi government.
NOTE: Views expressed are the author’s own. Janta Ka Reporter does not endorse any of the views, facts, incidents mentioned in this piece.