इरशाद अली
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच की तरकार सारा देश पिछले कई महिनों से देख रहा है और नजीब जंग साहब के बारे मे अब तो ये आम हो चुका है उनका काम चुनी सरकार के फैसले में टांग अड़ाना मात्र है।
लेकिन अभी जो स्कूल की जमीन के आवंटन में मान्य नजीब जंग जी ने स्वामीभक्ति की मिसाल पेश की है वो हमेशा-हमेशा याद रखी जाएगी।
बच्चों का हक छिनकर ऐसे पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए जमीन नाम कर देना ना सिर्फ आपके घटिया विवेक को दर्शाती है बल्कि आपके दामन में ऐसा दाग भी लगा देती है जो केन्द्र की चापलूसी की रोशनाई से तैयार होता है।
और मैं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री से सवाल पुछना चाहता हूं कि वह अपने पत्र में कहते है कि आप जमीन के मालिक है। आखिर कौन है जो नजीबजंग को जमीन का मालिक बनाता है?
क्या वो अपने घर से इस जमीन को लेकर आए है या उनके पिताजी ने ये जमीन उनके नाम की है। अरे कोई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक इस देश का मालिक नहीं हो सकता है।
राजकीय सेवक और मालिक होने में फर्क होता है और राजकीय सेवक होने का मतलब ये कतई नहीं होता कि आप चाटूकारिता की सारी हदें पार कर जाए। देश देख और सून रहा है।
नजीबजंग जी आप मासूमों का हक मारकर कैसे आराम की नींद सो सकते है। क्या आप सारे काम ऐसे ही करते है? आपने कसम खाई है कि विकास का रोड़ा बनना ही बनना है। भावी नौनिहालोें की हाय आप कैसे सहन कर सकते है?
एक तो ऐसे ही कोई बुनियादी कामों को नहीं करता और अगर करना चाहे तो आप जैसे लोग अपने पद का गलत फायदा उठाकर पार्टी के हक में फैसला देगें। जरा अपने ईमान के एक पलड़े में पार्टी कार्यकर्ताओं के दफ्तर को रखना और दूसरे में छोटे बच्चों के बनने वाले इस स्कूल को रखना, और हां अपने बच्चों की तरफ जरूर देख लेना फिर फैसला करना।
इससे आपको अपने ईमान की मजबूती का पता जरूर चल जाएगा इस बात की गारन्टी मैं जरूर देता हूं। आदरणीय उपराज्यपाल जी बच्चों के हक में फैसला दिजिए स्वामीभक्ति दिखाने के अवसर तो आपके पास भरे पड़े होगें। फिर कभी किसी और मौके पर अपनी टांग अड़ा लिजियेगा। अभी छोटे-छोटे बच्चों के भविष्य की आधारशिला के लिए जो पत्थर रखे जा रहे है उसका हिस्सा बनें ना कि वो जो आपको लोग सच में समझते है।